Thursday, April 3, 2008

जोधा यानी हिन्दी, अकबर यानी उर्दू


आशुतोष गोवारीकर को जोधा अकबर फिल्म को चाहे जिस भी कारण से लोगों ने सराहा हो, चाहे कहानी की ऐतिहासिक तथ्यों के छेड़छाड़ के कारण चर्चा में हो या फिर भव्य सेट के रूप में, चाहे जोधाबाई का किरदार ऐश्वर्या राय की नई खूबसूरती की चर्चा हो या मुगल सम्राट अकबर की भूमिका में ऋतिक रोशन की बढ़िया आवाज़ हो (जिसकी मैंने तो ऋतिक से कल्पना नहीं की थी), ...जो चीज मुझे सबसे ज्यादा बुरी लगी वह यह कि फिल्म शुरू होने के साथ ही मैंने देखा कि स्क्रीन पर जोधा हिन्दी में लिखा आ रहा है और अकबर उर्दू में या यूँ लें हिन्दी व उर्दू की लिखी जानेवाली लिपि में. आशुतोष गोवारीकर एक अच्छे निर्देशक हैं ऐसी किसी अवधारणा को यहीं दम तोड़ना चाहिए. और यह भी बताती हैं कि आशुतोष ने कितनी गैर जिम्मेदारी से फिल्म बनाई है.

रहने दीजिए कि जोधा किसकी बीबी थी जहांगीर कि या अकबर की, लेकिन जोधा जिस समय थीं उस समय शायद ऐसे कोई अंतर नहीं थे कि जोधा जो हिन्दू थी उसका मतलब हिन्दी भी था...कम से कम वह अंतर तो मुझे उन्नीसवीं सदी के पहले तो नहीं दिखाई देता है. जोधा का हिन्दू से मतलब तो हम समझ सकते हैं और अकबर से मुसलमान की लेकिन मुझे यह बहुत ही गैर जिम्मेदाराना लगा कि आशुतोष गोवारीकर अपनी इस समझ को अंततः हिन्दी व उर्दू से जोड़ दें. यही बताती हैं कि आशुतोष की एक अच्छे फिल्मकार के रूप में संभावनाएं काफी कम हैं हालांकि यह संभव है कि वे फिल्म इंडस्ट्री के कुछ खास ट्रिक से अपनी फिल्में हिट व विवादित करते रहें.

मुझे लगता है कि हिन्दी को हिन्दुओं और उर्दू को मुसलमानों से जोड़ने में अंग्रेजों व कुछ राजनायिकों की सफलता ने दोनों भाषाओं का जितना बुरा किया है
उतना शायद किसी और कारण ने नहीं. इस कारण हिन्दी ने जहां लोक से जुड़ने के अपने सामर्थ्य को खो दिया, वहीं उर्दू ने वह लोक ही खो दिया जिसकी बदौलत वह जिन्दा थी. प्रयोग के स्तर पर देखें तो हिन्दी व उर्दू एक-दूसरे की सबसे बड़ी ताकत बन सकते थे लेकिन हुआ उल्टा. मैं इसमें नहीं जाना चाहता कि कैसे उर्दू का विकास वास्तविक गंगा-जमुना संस्कृति की ही देन थी और कैसे वह मध्यकाल की सेनाओं के बीच विकसित हुई. लेकिन आशुतोष को इतना जरूर समझना चाहिए कि हिन्दी व उर्दू का धर्मों से यह जुड़ाव आज की चीज है और लेकिन कास्टिंग के बाद के शुरूआती पन्ने पर जोधा-अकबर को हिन्दी और उर्दू में लिखकर उन्होंने भारी ऐतिहासिक भूल की है.

हिन्दी को उर्दू के बजाय संस्कृत (जिसकी नसीहत संविधान में भी दी गई है) से जोड़कर हमने बड़ी भूल की है...समन्वय की तहज़ीब से जन्मी हमने एक ऐसी भाषा को खुद से अलग कर दिया जो हिन्दी को एक ऐसी नजाकत व लचीलापन दे सकती थी जिसके अभाव के कारण हिन्दी का प्रयोग खासकर अनुवाद की विभिन्न स्थितियों में हास्यास्पद दिखता है और उर्दू के शब्द अब हम अपना नहीं सकते क्योंकि हमने अपनी आदतें बदल लीं हैं. विषयांतर से अगर बचूं तो फिर कहना चाहूँगा कि आशुतोष गोवारीकर ने शुरूआत में पर्दे पर ऐसा लिखा दिखाकर वास्तव में अकबर की समन्वयवादी तौर-तरीकों के साथ अन्याय ही किया है.

7 comments:

संजय बेंगाणी said...

"हिन्दी को उर्दू के बजाय संस्कृत (जिसकी नसीहत संविधान में भी दी गई है) से जोड़कर हमने बड़ी भूल की है..."

आश्चर्यजनक कथन.

Dinesh Malviya said...

akbar-jodha-hindi-urdu-sanskrit sirf bhasha bhar hain. maa ke pet se aap bhasha seekhkar nahin aaye the, paida hote hi aapko italy bhej dete tao.
Apnee samajh par itna bharosa hai tao Asutosh Govarikar se seedhe uske muh par kahkar dikhayen, Dava hai mera aap ek shabd bhi bina haklaye nahin bol payenge. apne ghar men tao taliban bhi sher hai.. aap uski samajh par shak kar rahe hain jo apnee mahanat se chhote rols se Top Class Director aur Shandar production company bana chuka hai. aap use film banana sikhayenge, bhooliye mat aap patrakar hain aur wo Asutosh Govarikar. aapke kam men vo maharathi nahin hai isliye aapko patrakarita nahi sikha sakta.
Jise dekho uskee tang pakad raha hai, aap ghar par hi uske 48 karod kee baja rahe hain. Rajpooton ne bajayee. Sarkar ne bajayee. Sharm aati hai mujhe aap jaise logon par, kyonki jaisa aapko apnee lekhnee par itnee rukhee pratikriya men de raha hun waisee hee use aap jaise log de rahe hain. toa mujhmen-aapmen koi antar nahin hai. uska bhavishya aapke shekhchilli shabd nahin likh sakte.

Anonymous said...

"बहुत ही गैर जिम्मेदाराना लगा कि आशुतोष गोवारीकर अपनी इस समझ को अंततः हिन्दी व उर्दू से जोड़ दें. यही बताती हैं कि आशुतोष की एक अच्छे फिल्मकार के रूप में संभावनाएं काफी कम हैं"

आपकी मूल बात से कमोबेश सहमत हूँ कि जोधा को नागरी और अकबर को उर्दू में लिखना बचकाना है. पर आपका इससे सीधे इस निष्कर्ष पर पहुँचना भी तो वैसा ही है कि आशुतोष अच्छे फिल्मकार नहीं हो सकते या हैं.

मेरी नज़र में इससे ज़्यादा बचकानी, गैरज़िम्मेदाराना, और अनप्रोफ़ेशनल बात ये है कि हिंदी फिल्मों के नामांकन (क्रेडिट/टाइटल) केवल रोमन में किए जाने लगे हैं. दुनिया में कौन सी ऐसी सेल्फ-रेस्पेक्टिंग फ़िल्म इंडस्ट्री होगी जहाँ ऐसा होता हो. पर अब इसके लिए किस-किस को पकड़ेंगे.

Ghost Buster said...

आशुतोष गोवारिकर की लगान और स्वदेश बेहतर फिल्में थीं. मगर जोधा-अकबर बनाने का विचार आते ही हमें समझ में आ गया कि आशुतोष गोवारिकर अब वो नहीं रहे. खास कर ऐसा विषय जिस पर कंट्रोवर्सी का भरपूर स्कोप हो लेकर आशुतोष ने अपने को और नीचे गिरा लिया है. ये फ़िल्म हमने नहीं देखी क्योंकि पूर्ण विश्वास है कि अपने यहाँ ऐतिहासिक फ़िल्म के नाम पर नौटंकी ही बन सकती है.

संजय जी की बात में जोड़ना चाहेंगे, सिर्फ़ आश्चर्यजनक नहीं बल्कि मूर्खतापूर्ण कथन.

Divine India said...

मेरी समझ से यह चर्चा ही बेतूका है…
एक निर्देशक के रुप में मैं यही कहना चाहता हूँ की आशुतोष ने कोई गलती नहीं की है… परदे पर फिल्म आते ही हम समझ जाते है की फिल्म क्या है…। यही तो सही डायेरेक्टर की पहचान है जो बिना कहे ही बहुत कुछ लोगों को बता दे।

राजेश रंजन / Rajesh Ranjan said...

मित्रों, आप सबकी बेबाक टिप्पणी के लिए शुक्रिया ...मैं ब्लॉग की दुनिया में नया-नया हूँ और मेरी समझ है ब्लॉग शायद दूसरे और माध्यमों से ज्यादा स्वतंत्र, निडर और बेबाक है. आपकी टिप्पणी मेरी इस समझ को और पुख्ता करती है.

यहां ऐसा कुछ नहीं है कि मैं संस्कृत के महत्व को कम करके देखना चाहता हूँ. लेकिन मेरा कहना था कि हिन्दी अगर उर्दू को अपने हृदय से जोड़ पाती तो इसके परिणाम बड़े भारी होते. हम अंग्रेजी के शब्द खुद से जोड़कर तो नहीं शरमाते लेकिन हमने भाषा की एक पूरी की पूरी विरासत को अपनी परिधि से निकाल बाहर फेंका...आप ही सोचिए अगर उर्दू के शब्द भी हमारे ही शब्द होते तो!!!

Sadan Jha said...

hindi- urdu bibad ab koi nayi baat nahi rah gayi hai. eeski pechidgi bhi bahutere staron par hamaare saamne aa hi jaati hai. lekin ees ke babjud, aapne jis tarah se jodha-akbar ke title par gour kiya, wah apane aap main mahatwapurna hai. aam taur par hum film ke title ke script par dhyan nahi dete. film smikshak bhi title ko adhik bajuh nahi dete. lekin mujhe lagta hai ki eeski ahmiyat hai aur main aapke baat se sahmat hun ki jodha ko devnaagri main aur akbar ko persian script main parde par dikhana nihayat hi satahi aur betuki si baat hai.
mamuliram.