Wednesday, April 9, 2008

तो हिन्दी कंप्यूटर का कोई भविष्य नहीं है

भी-अभी हमारे अजीज मित्र ने यही सवाल दुहराया तो मेरे मुंह से निकल ही गया, कौन कहता है कि हिन्दी कंप्यूटर का कोई भविष्य नहीं है, कौन कहता है लोकलाइजेशन का कोई भविष्य नहीं है. मेरे वो मित्र भी कंप्यूटर स्थानीयकरण (लोकलाइजेशन) के काम से पिछले कई वर्षों से जुड़े हैं और भाषा और उनसे जुड़े सवाल को लेकर काफी परेशान रहते हैं. लोग बार-बार इन कोशिशों पर सवाल उठाते हैं लेकिन यदि यह गैर-जरूरी है तो फिर बहुत सारे सवाल उठने लगते हैं.

पहला सवाल तो यह उठता है कि यदि स्थानीयकरण का कोई भविष्य नहीं है तो फिर बड़ी कंपनियां इस रास्ते की ओर क्यों बढ़ती हैं?! यह एक ही साथ प्रश्न व विस्मय दोनों पैदा करता है. खासकर बड़ी मालिकाना स्वभाव की कंपनियों के लिए जहां लाभ ही पहली व आखिरी ख्वाहिश है, जहां हर कदम के लिए सर्वेक्षण कराए जाते हैं वह फिर इस ओर क्यों आ रही हैं. अब देखिए, याहू, एमएसएन, एओएल जैसी इंटरनेट की कई बड़ी कंपनियों ने हिन्दी सहित कई भाषाओं की ओर रूख किया है. छोड़िए कंपनियों की बात, यदि इसका भविष्य नहीं है तो फिर किसी हिन्दी डेस्कटॉप को देखकर आपके-हमारे मन खुश क्यों हो जाता है क्यों हम अपनी जिज्ञासा को दबा नहीं पाते हैं और जाकर देखते हैं कि देखूं तो कैसा दिखता है हमारा हिन्दी का डेस्कटॉप. जब अंग्रेजी जानने वाले आप जैसे लोगों का मन हिन्दी को देखकर गुदगुदाने लगता है तो फिर उनके लिए सोचिए जिन्हें ए बी सी भी नहीं आता है ;-).

कोई भी तकनीक कैसे फैलती है यह बड़े शोध का विषय है और इस पर बड़े काम भी हुए हैं. अब देखिए, जहां तक हिन्दी डेस्कटॉप की बात है तो यह कंप्यूटर अभी भी ज्यादातर उन्हीं लोगों के बीच घूम रही है जो अंग्रेजी भी जानते हैं. फर्ज कीजिए कि अंग्रेजी न जानने वाला इसे उपयोग में लाना तो फिर वह क्या करेगा. उसे तो कुंजी के A, B, C भी अनजाने लगेंगे. बीसेक साल पहले के टेलिविजन को देखें ...बेवाच की सुंदरियों का स्थान एकता कपूर की सोप-ओपेराओं ने ले लिया. उस समय के समाचार चैनल को भी याद करें...यहां तक कि दस साल पहले के समाचार चैनलों की तो आप आसानी से डेस्कटॉप व इंटरनेट पर हिन्दी की स्थिति से बहुत दुखी न होंगे. भारत के दस सबसे अखबारों में अंग्रेजी का एक ही अखबार आता है. फर्ज कीजिए यूनीकोड समर्थित फॉन्ट ही सिर्फ लोग उपयोग में लाना शुरू कर दें तो फिर कितनी हिन्दी की सामग्रियां जमा हो जाएंगी. ऐसा होना सिर्फ फर्ज करने की बात नहीं है, यह बस कुछेक सालों के अंदर होना ही है.

सच कहें तो हम अभी आधे-अधूरे स्थानीयकरण के दौर से गुजर रहे हैं और खासकर पिछले तीन-चार वर्षों की ही तरक्की इसकी विरासत है. स्थानीयकरण का अर्थ सही रूप से सिर्फ भाषा अनुवाद ही नहीं कर देना है बल्कि स्थानीयकरण कई स्तरों पर किए जाने की जरूरत है जैसे स्थानीय अंतर्वस्तु, रीति-रिवाज, संकेत प्रणाली, सॉर्टिंग, सांस्कृतिक मूल्यों व संदर्भों के साथ सौंदर्यानुभूति की दृष्टि से स्थानीयकरण की जरूरत है और धीरे-धीरे जरूर उस ओर भी बढ़ा जाएगा. और फिर दुनिया हमारी हिन्दी की होगी. मुझे तो लगता है कि यही बाजार और उदारीकरण व भूमंडलीकरण की नीतियां जो फिलहाल हमें दुखी कर रही हैं हमें और हमारी भाषा को आगे बढ़ाने में सबसे कारगर होंगी.

2 comments:

संजय बेंगाणी said...

सही कहा बाबू, हम भी मानते है की बजारवाद और भूमण्डलीकरण हिन्दी को वह स्थान दिलायेगा जो सरकारें नहीं दिला पायी.

हिन्दी की सेवा बन्द हो और दोहन चालू हो यही अपेक्षा है.

sandip sandilya said...

पिछली सदियों के इंसान को यदि जिन्दा करके कंप्यूटर, मोबाइल, लैपटॉप, आईपोड जैसी न जाने कितनी ही चमत्कारी वस्तुएँ दिखा दी जाए तो बेचारा गश खाकर गिर पड़े. आज की पीढी इन चीजों के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकती. ज्ञान के क्षेत्र में इन्सानों की सबसे बड़ी उपलब्धि इन्टरनेट की खोज है, इस युग में जो इन्टरनेट उपयोग नहीं करता, तो वह व्यावहारिक रूप से निरक्षर माना जाता हैं.
आज पूरी दुनिया में इन्टरनेट का उपयोग हो रहा हैं, भले ही कुछ देशों में यह प्रयोग कम हैं और कुछ में ज्यादा. भारत की ८ % से भी कम आबादी इन्टरनेट का उपयोग करती हैं. यह अनुपात विकसित देशों में ९०% आबादी की तुलना मे काफी कम हैं. सूचना प्रोद्योगिकी की शुरुआत भले ही अमेरीका में हुई हो, फिर भी भारत की मदद के बिना यह आगे नहीं बढ़ सकती थी. गूगल के एक वरिष्ट अधिकारी की ये स्वीकारोक्ति काफी महत्वपूर्ण हैं की आने वाले कुछ वर्षों में भारत दुनिया के बड़े कंप्यूटर बाजारों में से एक होगा और इन्टरनेट पर जिन तीन भाषाओं का दबदबा होगा वे हैं- हिंदी, मेंडरिन और अंग्रेजी. इसकी पुष्टि इस तथ्य से होती हैं कि आज भारत में ८ करोड़ लोग इन्टरनेट का उपयोग करते हैं इस आधार पर हम अमेरिका, चीन और जापान के बाद ४ वे नंबर पर हैं. जिस रफ़्तार से यह संख्या बढ़ रही हैं, वह दिन दूर नहीं जब भारत में इन्टरनेट उपयोगकर्ता विश्व में सबसे अधिक होंगे.
आमतौर पर यह धारणा हैं कि कंप्यूटरों का बुनियादी आधार अंग्रेजी हैं, यह धारणा सिरे से गलत हैं. कंप्यूटर कि भाषा अंको की भाषा है और अंको में भी केवल ० और १. कोई भी तकनीक और मशीन उपभोक्ता के लिये होती हैं. इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती हैं की उससे कैसे उपभोक्ता के अनुरूप ढला जाए. भारत के सन्दर्भ में कहें, तो आईटी के इस्तेमाल को हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओं के अनुरूप ढलना ही होगा. यह अपरिहार्य हैं, क्योंकि हमारे पास संख्या बल हैं. इसी के मद्देनजर सोफ्टवेयर की बड़ी कम्पनीयां अब नए बाजार के तलाश में सबसे पहले भारत का ही रुख करती हैं. ऐसा किसी उदारतावश नहीं, बल्कि व्यावसायिक बाध्यता के कारण संभव हुआ हैं. हमने तो अभी बस इन्टरनेट और मोबाइल तकनीकों का स्वाद चखा हैं और सम्पूर्ण विश्व के बाज़ार में हाहाकार मचा दिया.
इन्टरनेट पर हिंदी के पोर्टल अब व्यावसायिक तौर पर आत्मनिर्भर हो रहे हैं. कई दिग्गज आईटी कंपनियां चाहे वो याहू हो, गूगल हो या कोई और ही सब हिंदी अपना रहीं हैं. माइक्रोसॉफ्ट के डेस्कटॉप उत्पाद हिंदी में उपलब्ध हैं. आई बी ऍम , सन-मैक्रो सिस्टम, ओरक्ल आदि ने भी हिंदी को अपनाना शुरू कर दिया हैं. इन्टरनेट एक्सप्लोरर, नेट्स्केप, मोज़िला, क्रोम आदि इन्टरनेट ब्राउज़र भी खुल कर हिंदी का समर्थन कर रहे हैं. आम कंप्यूटर उपभोक्ताओं के लिये कामकाज से लेकर डाटाबेस तक हिंदी में उपलब्ध हैं.
ज्ञान के किसी भी क्षेत्र का नाम ले, उससे संबन्धित हिंदी वेबसाइट आपका ज्ञानवर्धन के लिये उपलब्ध हैं. आज यूनीकोड के आने से कंप्यूटर पर अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं पर काम करना बहुत ही आसान हो गया हैं. यह दिलचस्प संयोग हैं की इधर यूनीकोड इनकोडिंग सिस्टम ने हिंदी को अंग्रेजी के समान सक्षम बना दिया है और इसी समय भारतीय बाजार का जबरदस्त विस्तार हुआ हैं. अब भारत सरकार भी इस मुद्दे पर गंभीर दिखता हैं और डी.ओ.इ. इनस्क्रिप्ट की-बोर्ड ले-आउट को कंप्यूटर के लिये अनिवार्य कर सकता है.
हमें यह गर्व करने का अधिकार तो हैं ही कि हमारे संख्या बल ने हिंदी भाषा को विश्व के मानचित्र पर अंकित कर दिया हैं. यह भी एक सत्य हैं कि किसी भी भाषा का विकास और प्रचार किसी प्रेरणा, प्रोत्साहन या दया का मोहताज नहीं, यह तो स्वतः विकास के राह पर आगे बढ़ता रहता हैं. आज प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, फिल्में हो या सीरियल्स, डिस्कवरी, जिओग्राफिक हो या हिस्ट्री या हो कार्टून सभी पर हिंदी कि तूती बोलती हैं. ये सभी तथ्य हमें हिंदी के उज्वल भविष्य के प्रति आश्वस्त करते है.
हिंदी के भविष्य कि इस उजली तस्वीर के बीच हमें हिंदी को प्रोद्योगिकी के अनुरूप ढालना हैं. कंप्यूटर पर केवल यूनीकोड को अपनाकर हम अर्ध मानकीकरण तक ही पहुच पाएंगे, जरुरत हैं यूनीकोड के साथ ही इनस्क्रिप्ट की-बोर्ड ले-आउट को अपनाने कि ताकि पूर्ण मानकीकरण सुनिश्चित किया जा सके. हिंदी साहित्य या समाचार आधारित वेबसाइट के अलावा तकनीक, विज्ञान, वाणिज्य आदि विषयों पर वेबसाइट तैयार करने की. उपयोगी अंग्रेज़ी साईट को हिंदी में तैयार करने की. इन सबके बीच अपनी भाषा की प्रकृति को बरकार रखते हुए इसमें लचीलापन लाना होगा. आइये, प्रोद्योगिकी के इस युग में हिंदी के उज्ज्वल भविष्य के बीच हम इसके प्रति सवेदनशील बने और खुद को इसकी प्रगति में भागीदार बनाएँ.
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समिधा फाउंडेशन की ओर से