Wednesday, December 17, 2008
तो डाउनलोड कीजिए फ़ायरफ़ॉक्स हिन्दी - फ़ूली ऑफ़िशयल
हौसलाआफ़जाई के लिए शुक्रिया दोस्तों!
Tuesday, December 16, 2008
फ़ायरफ़ॉक्स हिंदी बीटा से आधिकारिक स्थिति में जल्द ही
मैं व्यक्तिगत तौर पर रविकांत, गोरा, करूणाकर, रविरतलामी सहित उन सारे लोगों का शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने इसके अनुवाद की व्यापकता से समीक्षा दिल्ली स्थित सराय में सराय की थी। साथ ही मैं अपने ब्लॉगर मित्रों का भी शुक्रिया करता हूँ जिन्होंने इसकी जाँच में योगदान दिया था। आरंभ में सीवीएस खाते आदि के कामों के रमण ने काफी सहयोग दिया था। अंत में लेकिन काफी महत्वपूर्ण रूप से मैं पंजाबी के लिए काम करने वाले अमन प्रीत का बहुत शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने मुझे इसकी प्रक्रिया आदि सारे जरूरी कामों को विस्तार से समझाया। मुक्त स्रोत के प्रति अमन का लगाव भी काबिले तारीफ है।
Thursday, December 4, 2008
मुंबई ब्लास्ट: संदर्भ मौज-मजे की लेखिका शोभा डे
Thursday, November 27, 2008
जब एक काला दूसरे को काला कहता है
तो यह और खतरनाक स्थिति होती है...और कुछ ऐसी ही स्थिति मधुर भंडारकर ने अपनी फ़िल्म फ़ैशन में दिखाई है. हालांकि फ़िल्म आए काफी दिन हो गए हैं लेकिन यह मुद्दा कुछ ऐसा है जिस पर बार-बार लिखा जाना चाहिए. और मैं भी रोक नहीं पा रहा हूँ. हमें आश्चर्य होता है कि मधुर भंडारकर जैसे व्यक्ति ने कैसे इन चीजों को समझने की कोशिश नहीं की महज काले के साथ सोने से 'पतिता' वाली कोई बात नहीं होती है. क्या मुंह काला सिर्फ काले के साथ सोने से होता है. एक सवाल आता है कि हम कौन से 'गोरे' हैं अगर गोरापन ही ऐसे 'काम' के लिए कोई कसौटी होती है. यूँ तो पूरी फ़िल्म मोटे तौर पर लोगों को ठीक-ठाक लग रही है परंतु इस प्रकार के 'जातीय प्रतीक' ने सब कुछ बे-मजा कर दिया है. क्या और किसी भारतीयों के साथ नायिका का सोना गर्त में गिरने जैसा नहीं था. गौरतलब है कि यहाँ मैं निर्देशन के दूसरे पक्षों, अभियन आदि पर बात कतई नहीं कर रहा हूँ. इसमें कोई शक नहीं कि मधुर भंडारकर चलताऊ मसाला हिंदी फ़िल्म के दूसरे निर्देशकों से थोड़े भिन्न हैं...लेकिन ऐसे संवेदनशील मुद्दे सिनेमा को थोड़ा कमजोर बना देते हैं.
Tuesday, October 14, 2008
Chacha Nehru or Mama Nehru!
In India, there is a saying, kosa kosa par pani badle, char kosa par vaani. This means that at every one kosa, (a local measuring unit for distance slightly greater than one mile) quality of water changes and at every four kosa language changes. This saying is not an exaggeration. For example in Bengali
Shadhubhasha, language of sages, is the written language with longer verb inflections and a more Sanskrit-derived vocabulary. Indian national anthem Jana Gana Mana and the national song of India Vande Mataram were composed in a form of Shadhubhasha, but its use is rapidly declining in modern age. Choltibhasha, running language, a written Bengali style that reflects a more colloquial idiom, is increasingly the standard for written Bengali. But if we talk about spoken Bengali , spoken Bengali exhibits far more variation than written Bengali. Ancholik dialect and one or more forms of Grammo Bengali can be found different with the small changes of distance.
Monday, October 13, 2008
Translation : Art plus Craft plus Science
On the contrary, such a fixed relationship would only exist, were a new language synthesized and continually synchronized with another, existing language in such a way that each word would forever carry exactly the same scope and shades of meaning, with careful attention being given to the preservation of etymological roots and lexical "ecological niches," assuming that these were known with certainty. If the new language were then ever to take on a life of its own apart from such cryptographic use, each word would naturally begin to assume new shades of meaning and cast off previous associations, thereby vitiating any such synthetic synchronization.
There has been debate as to whether translation is an art or a craft. Literary translators, such as Gregory Rabassa in If This Be the reason, argue that translation is an art, though one that it is teachable. Other translators, mostly those who work on technical, business or legal documents, regard their métier as a craft — one that can not only be taught, but that is subject to linguistic analysis and that benefits from academic study.
Most translators will agree that the situation depends on the nature of the text being translated. A simple document, e.g. a product brochure, can often be translated quickly, using techniques familiar to advanced language-students. By contrast, a newspaper editorial, a political speech, or a book on almost any subject will require not only the craft of good language skills and research technique, but a substantial knowledge of the subject matter, a cultural sensitivity, and a mastery of the art of good writing. Translation has, indeed, served as a writing school for many recognized writers.
We cannot say translation is a art only, or craft or science only. In fact translation is the combination of all the three. As far as translation is concern it is not similar to that of fine art like things but if writing any story is creation then translating it is essentially a recreation. Art and craft are complementary to each other and for translating anything a good amount of experience is also needed. The whole process of doing any translation is fully scientific so translation is science also.
Friday, October 10, 2008
FUEL: An initiative in language standardization via collaboration
"FUEL (Frequently Used Entries for Localization) aims to solve the problem of inconsistency and lack of standardization in computer software translation in a new and unique way. Initiated by Red Hat, the project is trying to give a better experience to end users of a localized desktop by resolving the issues of standardization and inconsistency."
"FUEL is an attempt to standardize terms for the whole desktop instead of concentrating on different applications separately. At present, FUEL incorporates representative entries from the GNOME desktop, OpenOffice.org, Firefox browser, Evolution email client, and Pidgin instant messenger, so that it can have at least all the entries that a normal user uses very frequently. Later, on demand from communities, FUEL can incorporate more applications in its list from different projects."
सहभागिता आधारित भाषा मानकीकरण का एक प्रयास
Wednesday, October 1, 2008
फ़ॉयरफ़ॉक्स आपके देश में - एक सर्वेक्षण
सर्वेक्षण में भाग आप यहाँ जाकर ले सकते हैं. यहाँ उत्तरों को अज्ञात रूप में रिकार्ड किया जाता है. यह अधिकतम पाँच मिनट ही लेता है.
Firefox in your country Survey
Here is the survey . Here answers are being recorded anonymously. It is not taking more than 5 minutes. So I request you all to take the survey so that they can understand Indian community in better way.
Wednesday, September 24, 2008
फ़ॉयरफ़ॉक्स 3 .0. 2 हिंदी बीटा जारी
को रिलीज किया जा चुका है...कृपया जाँचें और बताएँ। हम उन सभी के लिए आभारी हैं जिन्होंने इसकी जाँच में सहयोग किया था और अपनी प्रतिक्रिया पिछले ब्लॉगों पर भेजी थी। यहाँ हम सराय के ट्रांसलेशन रिव्यू वर्कशॉप और उसमें भाग लेने वाले सभी लोगों का जिक्र करना जरूर चाहेंगे जिसकी वजह से यह बेहतर रूप में आ पाया है। इसमें फ्यूल लिस्ट का भी उपयोग किया गया है। शुक्रिया श्री रमण व उनकी टीम का भी जिन्होंने इसमें महत्वपूर्ण सहयोग दिया है।
Monday, September 22, 2008
एक हिंदी विद्यालय की मौत
Friday, September 19, 2008
पहले इंटरनेटी लोकार्पण में शरीक हों
www.literatureindia.com/hindi/
के लोकार्पण कार्यक्रम में सादर आमंत्रित हैं.
कवि श्री नीलाभ लोकार्पण व अध्यक्षता करेंगे
बीज वक्तव्य इतिहासकार श्री रविकान्त का होगा.
इस अवसर पर कवि श्री मोहन राणा अपनी कविता पाठ के साथ संक्षिप्त वक्तव्य देंगे.
संचालन व्यंग्यकार व तकनीकी अनुवादक श्री रवि रतलामी करेंगे.
स्थान: सर्वर irc.freenode.net चैनल #sarai
दिनांक: 20 सितंबर 2008 शनिवार
समय: 04 बजे अपराह्न (भारतीय समयानुसार)
irc पर जुड़ने के लिए इस ब्लॉग की मदद आप लें : http://raviratlami.blogspot.com/2008/09/blog-post_19.हटमल
इस ब्लॉग के शीर्षक को मैंने रवि भाई से चुराया है...
Sunday, August 31, 2008
'पानी के आदमियों जैसे हजार-हजार सर' और कौसिकी की धार
"पत्थरों पर पानी सर सर फोड़ता था
पानी के आदमियों जैसे हजार-हजार सर
और धुंध में जमता झाग
रात में चमकता हुआ"
- मंगलेश डबराल
"पानी में दिखता है कभी तेज बहाव में
छटपटाता हुआ कोई
बेमानी मगर उसकी छटपटाहट बिलकुल निरूपाय
कि बचाने की पुरानी रिवायत खत्म हो चुकी"
-पंकज सिंह
सचमुच 'बचाने की पुरानी रिवायत खत्म हो चुकी है' और विष्णु खरे की उधार लें तो लगता है कि "बादल और नदियाँ सूरज, हवा और घरती से मिलकर अपना निर्मम और व्यापक बदला लेते हैं." अंत में कौसिकी के धार में पले बढ़े नागार्जुन की सुनें:
गाछी सुखा गेल
कलमबाग नष्ट भेल
उजड़ल देहात
बिगड़ल बसात
लोकवेद बेहाल
पड़ल अकाल
मुइल माल-जाल
कतहु रहल ने शेष
आरि धुरक ने रेख
लै गेल बहाय सभक
खेत औ' पथार
कौसिकीक धार !
Friday, August 15, 2008
Translation and the Concept of Register
On the basis of register only we can differentiate between the functionality of language in different human practice. Basically to understand the speciality the concept of register came in linguistics. When we make differences in same language according to particular subject area then register is created. Due to the use only official Hindi is different from commercial Hindi, commercial Hindi is different from technical Hindi and technical Hindi is different from social Hindi and so on. All area have its own particular words and use. The glossaries and use of language in all areas are different. The identification of this difference is essential. We can see the difference in the following examples.
At the level of words:
Administration Scientific
Grant Force
Registration Velocity
Document Displacement
Confidential Magnetism
Compensation Photosynthesis
Thursday, August 14, 2008
टिंडरबॉक्स से अग्निलूमड़
फ़ायरफ़ॉक्स उर्फ अग्निलूमड़ की जाँच सीधे टिंडरबॉक्स से करें. आप अपना नवीनतम हिन्दी बिल्ड सीधे यहीं से ले सकते हैं...अपने मनपसंद प्लेटफ़ॉर्म के अनुसार. लगातार पकते हुए खाने का अगर आप आनंद लेना चाहते हैं तो टिंडरबॉक्स पन्ने पर जाएँ. यदि नाइटली बिल्ड चाहिए तो यहाँ से लीजिए. इस सबके साथ मोज़िला डैशबोर्ड पर अपनी भाषा को दूसरी भाषा के साथ देखें. कुछ दिक्कत हो तो हमें खबर देना न भूलें. हाँ...अगर सबकुछ 'कुशल' रहा तो यह अधिकृत अनुवाद में शामिल होगा :-)...
लेकिन अभी 15-20 दिन शेष हैं.
अंत में आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया...रवि रतलामी, देबाशीष, जय, शैलेश भारतवासी, आलोक, अनुनाद सिंह, संजय बेंगाणी, प्रतिभा जैसे तमाम लोगों का...! कुछ और कारसेवकों का इंतजार है...
Monday, August 11, 2008
Test Firefox3.0.2 Hindi
Firefox 3.0.2 Hindi is available for linux, mac, and windows platform. So please try to test it for more platform if you have with you. I got several report at my earlier post and I am thankful to all.
Thursday, August 7, 2008
फ़ायरफ़ॉक्स 3.0.2 हिन्दी टेस्ट के लिए तैयार
Friday, August 1, 2008
Fuel Telugu Evaluation at mukt.in
Anybody want to partcipate can contact to Pavihtram. Current Translation status file prepared by an active contributor Krishna Babu can be downloaded from here.
Friday, July 25, 2008
फ़्यूल - फ़ोटोवायस
मानकीकरण के इस प्रयास को और भाषाओं के लिए भी शुरू करने की योजना है...फ़्यूल हिन्दी जारी किए जाने से आप परिचित तो हैं हीं...
Tuesday, July 22, 2008
Fuel : Means and End
1. Fuel is a Collaborative, Open and Transparent way to achieve standardization
Inclusiveness and participation are the backbone of Fuel process. It provides public review process in creating terms. It is having a version control system, bug tracker and ticketing system and a public mailing list through which anybody can take part in discussion about it. With the help of collaborative and open process Fuel is able to generate quality localized content.
2. Fuel should not be confused with a simple glossary
Though Fuel's 'end' is to come with a 'standardized' 'glossary' but the 'means' through this is evolving is entirely different. Here, as we shown for Hindi language, we are coming with a glossary by public evaluation by all the active communities, not only from Firefox or OpenOffice or Gnome or Kde localizers..., but all groups sat together at one place and discussed issues and finally decided that from now onwards we will use these 'standardized' entries only for the desktop translation these entries. Fuel is based on the consensus of active communities. So here comes the end of inconsistency!
3. Fuel considers whole desktop in totality
FUEL will be an attempt to put effort of standardization for desktop as a whole, desktop in totality instead of concentrating on different applications one by one. This approach has several benefit over others. One major benefit is that its usability is much more than others who take different applications individually. Also, for creating manuals it's benefit is big. It has nothing to do with the quantity of translation, it concentrates on giving consistently highly quality content.
4. Fuel is/can be the main catalyst, main fuel, main motivator behind a language having no terminology. If any language is not having terminology than Fuel is able to give a quick idea about the major entries that s/he is going to translate for her/his language. I, personally, think that language having no terminology should first concentrate on making at least primary level glossary. It is also making the review process easier. At present just 578 entries to start with!
Tuesday, July 15, 2008
फ़्यूल हिन्दी 12 जुलाई को जारी
फ़्यूल की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि यहाँ शब्द पर निर्णय खुले व साझेदारी से लिए जाते हैं. फिर इस परियोजना में आपको सूची के संबंध में अपनी शिकायत को दर्ज़ करने की भी सुविधा है. किसी दूसरे सॉफ़्टवेयर विकास की प्रक्रियाओं की तरह यहाँ भी सारी सुविधाएँ हैं और कोई भी व्यक्ति इससे जुड़ सकता है. सबसे महत्वपूर्ण रूप से, यहाँ पर एक पूरे डेस्कटॉप की समग्रता में देखने के कोशिश की गई है बजाए अलग अलग अनुप्रयोग के. यह निश्चित रूप से डेस्कटॉप स्थानीयकरण के मानकीकरण की ओर जाने में मदद करेगा. साथ ही वैसे लोगों की सुविधा के लिए मूल्यांकन किए गए फाइल को दूसरे रूप में भी रखा गया है जो पीओ प्रारूप से परिचित नहीं हैं. इसके अलावे वर्शन कंट्रोल सिस्टम व एक डाक सूची भी है.
दो दिनों तक लोगों ने मिल-बैठकर तय किया है कि भविष्य में इन प्रविष्टियों का स्वरूप स्थिर रखने की कोशिश की जाएगी...लेकिन माँग और आवश्यकता पड़ने पर हम तब्दीली भी जरूर करेंगे. साथ ही अनुप्रयोगों के नए संस्करणों के परिवर्तन को समाहित करने के लिए हम आवधिक रूप से इसे नए रूप में जारी करेंगे. लेकिन यह तो बाद की बात है...पहले हिन्दी फ़्यूल सूची pdf, ods या po में से किसी रूप में डाउनलोड कीजिए और अपने सुझाव इस फ़्यूल डाक सूची में शामिल होकर भेजिए.
Fuel because...
Generally lots of similar words are used for different applications with almost all having same context...like File, Edit, View, Save, Save as...!! Collecting all these words from different applications and putting it together can help much. Choosing entries from menus and sub-menus appearing on a desktop, its panel, browser, office suits, editor, email client, messanger and terminal and by concentrating on these entries only, we can get an amazing result instantly. But its only a start. No doubt, for software localization these five-six hundred entries are most vital and we can give a face-wash and make our destop 'fresh' from a 'tired' look. So these are the entries that are frequently used for localization and so I like to call it 'Fuel' ie. 'frequentlu used entries for localization'.
The effort of FUEL is unique. It is a set of steps any content generating people involved in creating localized content can undertake and with the help of this we can ensure consistently highly quality. Including this FUEL is having a version control system allowing evolution of terms, a bug tracker and ticketing system and a mailing list also. Collaborative innovation is a most important aspect. In the process finally it is able to allow inclusiveness and participation with openness and transparency.
The history of standardization contains lot of major names and contributors inside it. But these standardization efforts were generally automated. Generally after the long process and labour glossaries with several thousands of entries were made available to the public. But nothing changed! This doesn't mean that FUEL undermines the importance of previous works. But here in FUEL, effort will be more on collaboration and openness so as like earlier standardization efforts it not only comes as an addition to the existing chaos and making the standardization process finally more complex. The individual FUEL effort for different languages will generally start with smaller number of entries. Apart from these features it also provides public review process in creating terms. During the process of standardization, FUEL will be an attempt to put effort of standardization for desktop as a whole, desktop in totallity instead of concentrating on different applications one by one. So currentely we have incorporated entries from gnome desktop (gdm, panel, gnome-menu etc), gedit (editor) openoffice (office suit), firefox (Browser), evolution (Email Client), and pidgin (instant messanger) so that we can have all the entires that a normal user uses frequentely. By this way we tried to use representative entries from major application. If a people is changing the platform s/he will see similar or almost similar entries.
So, FUEL (Frequently Used Entries for Localization) aims at solving the Problem of Inconsistency and Lack of standardization in Computer Software Translation across the platform for all Indic Languages. It will try to provide a standardized and consistent look of computer for a language computer users.
Wednesday, April 30, 2008
कंङरेसिया बइमान
किसान
उठह भाइ किसान!
अपना दुक्ख अपने नहि बुझबह तँ के बुझतह आन
आबह तों सबतरि फहराबह लाले निशान
उठह भाइ किसान!
जमिन्दार पर जकर नजर छह, पूँजिपति दिश ध्यान
तकरा बुते कोना क' हेतइ गरिबहाक कल्यान
दिल्ली में नेहरू पटना मे सिरीकिसुन श्रीमान
गाल बजाबथि, भोग लगाबथि मेवा ओ मिस्टान
घोंघा गाँथि माला बनाओल, धएलक बक सन ध्यान
घर भरलक ओ धोधि बढ़ओलक कंङरेसिया बइमान
दिन दिन दुर्लभ अन्न, कंठ मे अटकि रहल छइ प्रान
एकमतिया ज नहि हेबह त भ जेबह हलकान
उठह भाइ किसान!
कविता मैथिली में है लेकिन आशा है कि इस भाषा से जो परिचित नहीं हैं उन्हें भी यह उतनी ही समझ में आएगी जितनी किसी मैथिली भाषी को आ सकती है. हमलोग इतने साहस से क्यों नहीं बोल पाते हैं, किसी गलत को गलत क्यों नहीं कह पाते हैं. हम ऐसी कविता क्यों नहीं कर पाते. कारण जाहिर है कि हममें साहस नहीं है और कविता करने के लिए साहस चाहिए. हम भाट बन सकते हैं चारण बन सकते हैं लेकिन कवि नहीं बन सकते हैं...कवि बस कहला सकते हैं. हम वास्तव में छोटे छोटे स्वार्थों के गुलाम हैं. इसलिए ऐसी कविता नहीं कर सकते हैं. अब देखिए कितने 'कवि' आज भी हैं लेकिन कितनी कविताएं इतनी हो पाती हैं. दिलो दिमाग पर पदवी, पुरस्कार व पैसे ने हमलोगों के कलम से पैनेपन को छीन लिया है. हम ब्लॉग तो लिखते हैं लेकिन हम देखते हैं यह कितने लोगों को खुश करेगी...कितने लोगों की पसंद बनेगी. आगे बढ़कर देखें, मैं आपकी पीठ थपथपाता हूँ आप मेरी थपथपाएं. इंटरनेट पर चिट्ठाकारी लगभग पूरी तरह से स्वतंत्र माध्यम है...न संपादक की कलम का डर, न प्रकाशक के छापने से मना करने का डर. हम ब्लॉग को भी कविता की तरह साहस की चीज बना सकते हैं हम ब्लॉग को साहस का ब्लॉग बना सकते हैं बशर्ते हम अपने लालच व कमीनेपन से इस माध्यम को दूर रखें.
Thursday, April 24, 2008
मटियानी : विलक्षण कथाकार व दयनीय विचारक - राजेंद्र यादव
आउटस्टैंडिंग कहानी कहते हैं वो नहीं है. उनके पास सबसे ज्यादा हैं. हमलोगों में सबसे ज्यादा प्रतिभाशाली आदमी.उनमें अनुभव की आग और तड़प है. हमलोग कहीं न कहीं बुकिश हो जाते हैं. वे जिंदगी से उठाई गई कहानियां लिखते थे."
- राजेंद्र यादव
वरिष्ठ कथाकार और 'हंस' के संपादक राजेंद्र यादव हिंदी के संभवतः सर्वाधिक चर्चित और साथ ही विवादास्पद लेखक हैं. शैलेश मटियानी से इनकी काफी घनिष्ठता भी रही परंतु साथ ही कटुता उत्पन्न कर देने वाली झड़पों की लंबी किश्तें भी संबंधों में जुड़ती रहीं. राजेंद्र यादव और शैलेश मटियानी के बीच लड़ाई मूलतः विचारधारात्मक स्तर पर रही. राजेंद्र यादव खुद उनकी कहानियों के भयंकर प्रशंसक रहे हैं. वे मटियानी को हिंदी का एक ऐसा अकेला कहानीकार मानते हैं जिनके पास सबसे ज्यादा विश्वस्तरीय कहानियां है, यहां तक कि प्रेमचंद से भी ज्यादा. विचारधारात्मक स्तर पर मटियानी के धुर विरोधी परंतु रचनात्मकता के स्तर पर घनघोर समर्थक राजेंद्र यादव से मटियानी पर बात करना मटियानी के कई पक्षों को खोलना है. शैलेश मटियानी की मृत्यु को बीते 24 अप्रैल को सात साल पूरे हो गए. करीब छह साल पहले मैंने राजेंद्र यादव के साथ मटियानी पर बातचीत की थी. पढ़िए कुछ अंश.
अत्यंत महत्वपूर्ण कथाकार होने के बावजूद शैलेश मटियानी के व्यक्तित्व में ऐसा क्या रहा जिसके कारण
उन्हें वह अपेक्षित सम्मान न मिल सका जिसके वो निस्संदेह हकदार थे?
देखो, दिक्कत यह है कि शैलेश मटियानी के व्यक्तित्व के दो पक्ष हैं- एक तो रचनाकार और दूसरा विचारक. जो इधर पिछले 10-15 वर्षों में बहुत सामने आता रहा वह उनका विचारक पक्ष है. हालांकि इस बीच में उन्होंने 'माता', 'अहिंसा' और 'अर्द्धांगिनी' जैसी अद्भुत कहानियां लिखीं. यानी ये हिंदी की सर्वश्रेष्ठ कहानियों में से एक है. 'अर्द्धांगिनी' को तो मैं एक बहुत बड़ा लैंडमार्क मानता हूं. लेकिन शोर उनका ज्यादा उनके विचारक के कारण रहा . शोर भी नहीं कहूंगा बल्कि वे अपने को ज्यादा प्रोजेक्ट करते रहे विचारक की तरह.
अब यहां एक दूसरा प्वाइंट है. हम सब जानते हैं कि उनकी शिक्षा नहीं हुई थी. मैट्रिक का इम्तहान वे नहीं दे पाए थे. पहाड़ की जो स्थितियां थीं उसमें उन्हें भागकर बंबई जाना पड़ा. बहुत ही विकट स्थितियां थीं. आर्थिक रूप से और मानसिक रूप से भी. बंबई में उन्हें बहुत विकट जीवन जीना पड़ा.यानी फुटपाथ पर उन्हें बहुत समय बिताना पड़ा. मुफ्त के लंगरों या मंदिरों में या जहां मुफ्त खाना मिलता था, उन लाइनों में वे लगे. वहां से इन स्थितियों में गुजरकर वे आये. उन्होंने खुद लिखा है कि जब आवारा बच्चों की तरह पुलिस वाले उन्हें पकड़कर ले जाते थे तो उन्हें बड़ा अच्छा लगता था कि सोने की जगह मिलेगी और खाना मिलेगा. उन संघर्षों से आये हुए वे आदमी थे जिसके पास शिक्षा का बड़ा सहारा न हो, जिसने अपनी लेखकीय प्रतिभा पर अपनी जिंदगी, जगह बनाई.
जिस वक्त वे एक ढाबे में लगभग एक वेटर का काम कर रहे थे- प्लेटें धोने और चाय लाने का- एक छोटे में ढाबे में, उस वक्त तक उनकी कहानियां 'धर्मयुग' में छपना शुरू हो गई थीं. कितनी बड़ी विडंबना है कि 'धर्मयुग' जैसे सर्वश्रेष्ठ अखबार में जिनकी कहानियां छपना शुरू हो गई हों वो एक छोटे से सड़क के किनारे बने ढाबे में चाय-पानी देने और प्लेट साफ करने का काम कर रहा हो. तो उन स्थितियों में निकलकर, जिसे कहते हैं, गोर्की ने जिसे कहा है, 'समाज की तलछट से आए हुए लोग', वे आये थे. गोर्की ने अपनी आत्मकथा में इसी जीवन को जिया था जिसका नाम रखा था 'मेरा विश्वविद्यालय'. कहते थे कि ये मेरे विश्वविद्यालय हैं यहां से मैंने ट्रेनिंग ली है. मटियानी का स्ट्रांंगेस्ट प्वाइंट ये है. अब धीरे धीरे उनको लगता गया कि वे एक विचारक भी हैं. देश विदेश के विचारकों को समझने का पढ़ने का उन्हें मौका नहीं मिला. अंग्रेजी नहीं जानते थे. लेकिन फिर भी वो अपने ढंग से एक विचारक थे. देश की समझ, राष्ट्र की समस्या, भाषा की समस्या पर वे हमेशा लिखते थे. क्योंकि बिना लिखे रह भी नहीं सकते थे या रह सकना संभव नहीं था, कुछ तो आर्थिक कारणों से.
एक आत्मविश्वास उनमें जबरदस्त था. आत्मविश्वास और साहस. दिक्कत यह थी कि वो हिंदुत्व के उस घेरे से बाहर नहीं निकल पाए. विचार भी अगर उन्हें करना है तो सिर्फ उस पर बात करेंगे. धर्मग्रंथ या किसी इसी तरह की चीज को अगर कोई मानता रहा है तो वे उसे दूसरे ढंग से मानने का आग्रह करेंगे. कहना चाहिए कि घेरा वही था उससे बाहर वे नहीं निकल पाए. कहना चाहिए कि वे हिंदुत्व के पक्षधर और व्याख्याता होकर रह गये. एक अलग तरह से . उनकी चुनौती थी कि ये आर. एस. एस. वाले, ये संत-महात्मा हैं, ये न धर्म समझते हैं न संस्कृति समझते हैं.जो समझना चाहिए उनकी व्याख्या वे खुद देते थे. ये लोग राष्ट्र, राष्ट्रभक्ति, न भाषा जानते हैं. हिंदी एक तरह से उनकी मजबूरी भी थी और उनका लक्ष्य भी था. भाषा की बात बहुत करते थे.
मैं कहूंगा कि एक तरह से एक रूढ़िवादी विचारक के रूप में उन्होंने अपने को प्रोजेक्ट किया. पिछले 10 वर्षों में उन्होंने खुलकर हिंदुत्व का समर्थन करना शुरू कर दिया. 'पांचजञ्य' जैसी पत्रिकाओं में वे लगातार लिखते थे. उससे एक दूरी बढ़ती गई.
मैं खुद यह मानता हूं कि वे एक अद्भुत और विलक्षण कहानीकार और बहुत दयनीय विचारक थे. उनके व्यक्तित्व का एक तरह से विघटन या कहना चाहिए 'डिवैल्यूशन' होने का सबसे बड़ा कारण है कि लोगों ने उनके उस पक्ष को भी भुला दिया जो उनका सबसे मजबूत पक्ष था.साहित्य की मुख्यधारा से उनके किनारे पर चले जाने का एक मात्र बड़ा कारण यह रहा.
24 अप्रैल को मटियानी जी की पहली पुण्य तिथि है. क्या कारण है कि हिंदी की साहित्यिक परिधि में मटियानी की पुण्य तिथि के बहाने भी कोई भी कोई आयोजन नहीं हो रहा है?
अगर एक आदमी किसी पार्टी या विचारधारा से प्रतिबद्ध है तो यह जरूरी नहीं कि लोग उनकी एनीवर्सरी आदि मनाएं. अगर नरेंद्र कोहली के साथ कुछ हो जाए तो हम उनके लिए क्यों गोष्ठी करेंगे. होंगे नरेंद्र कोहली उनके लिए बड़े लेखक परंतु जनवादी लेखक क्यों मनायेगा?
लेकिन यह ज्यादती है. क्योंकि शैलेश मटियानी रेणु से पहले आदमी हैं जिन्होंने बहुत सफलता पूर्वक आंचलिक भाषा व आंचलिक संस्कृति का प्रयोग किया. जब रेणु का कहीं पता नहीं था तब उनका 'बोरीवली से बोरीबंदर तक' जैसा उपन्यास आ चुका था. पहाड़ के जीवन पर उनकी अद्भुत कहानियां आ चुकी हैं जो वहां की जीवन और वहां की संस्कृति और भाषा निरूपित करती थी. कई और रचनाएं आ चुकी थीं. उनमें रेणु से कम शक्ति नहीं है.उनमें विविधता ज्यादा है. बहुत ज्यादा विविधता है, क्योंकि अपने अनुभव हैं भिन्न-भिन्न तरह के फुटपाथ से लेकर बड़े शहरों तरह तक .
बेटे की हत्या ने उनके जीवन में एक बहुत खास तरह का परिवर्तन पैदा किया और एक पराजय का भाव, प्रारब्ध और नियति के सामने समर्पण का भाव, और धर्म और ईश्वर से एक तरह से इससे निकालने के लिए प्रार्थना का भाव पैदा किया. अपने इस अवमूल्यन के लिए कहीं पर यानी अपने शक्तिशाली लेखन को मार्जिन पर फेंक देने के लिए वे खुद जिम्मेदार हैं, हमलोग नहीं. हालांकि मैं यह मानता हूं कि हमें उनके विचारपक्ष को एक तरफ डाल देना चाहिए.उसे अलग फेंक सकते हैं. लेकिन उनकी रचनात्मकता हमारे किसी भी बड़े से बड़े लेखक से कम नहीं है. वो बहुत महत्वपूर्ण लेखक हैं और उन पर चाहे हमलोग कुछ करें या न करें कम से कम यह स्वीकृति जरूर होनी चाहिए कि हमारे बीच एक इस तरह का लेखक है जो वास्तविक अर्थ में अपनी जमीन से जुड़ा था, मुहावरे में नहीं. जो 'अर्द्धांगिनी' जैसी कहानी लिख सकता है वह निश्चित रूप से ..... . . वन आफ द ग्रेटेस्ट राइटर आफ दिस कंट्री.
उनकी शुरू की कहानियों की कई लोगों, शिवप्रसाद सिंह आदि ने नकल की.'दो दुखों का एक सुख' यह भिखमंगों पर है, खाना नहीं मिलता है, उन्हीं के बीच प्रेम हो जाता है दो दुख मिलकर किस तरह से एक सुख में बदल जाते हैं. एक आत्मीय सुख. मैं तो बहुत सपाट ढंग से इस आइडिया को रख रहा हूं, उसने बहुत खूबसूरत ढंग से लिखा है. तो वे कहानियां तो याद रखने वाली कहानियां हैं. एक तरह से उनके उपेक्षित हो जाने का कारण उनका विचार के प्रति अतिरिक्त आग्रह है, जो निश्चित रूप से वर्णव्यवस्थावादी है, जो आउटडेटेड है , जो सामंती है.
आपने कहा कि उनके जो इस ढंग के विचार आ रहे थे वे पिछले पंद्रह सालों से आ रहे थे. क्या उससे पहले उन्हें भरपूर समर्थन मिला था अथवा नहीं?
वे हिंदी के एक महत्वपूर्ण लेखक माने जाते थे. वे बहुत ओजस्वी वक्ता थे. लेकिन उनके भीतर हमेशा यह कचोट बनी रही कि मुझमें जितनी प्रतिभा है जितना मैं महान चिंतन करता हंू उतनी मुझे रिकग्नीशन नहीं मिली. ये कष्ट उन्हें था. उसके लिए वे अनेक लोगों को जिम्मेदार मानते थे जिनमें से लेखकों के संगठनों को भी मानते थे.जिंदगीभर वे लेखक संगठनों को खासकर के वामपंथी प्रगतिशील विचारधारा के लेखक संगठनों गालियां देते रहे. वे ये कहते रहे कि ये चोरों के अड्डे हैं. ये बदमाशों का समूह है तो फिर इन संगठनों से क्या उम्मीद की जाए कि यही उनकी स्मृति में सभाएं करेंगे.
लेकिन यह एक व्यावहारिकता है और मैं इसका पक्ष नहीं ले रहा हूं. यह सही चीज है कि आप मुझे गालियां देते रहें तो ठीक है आप अच्छे लेखक होंगे लेकिन मेरे लिए कुछ नहीं हैं.
मटियानी को नागार्जुन ने भारत के सम्भावित गोर्की के रूप में देखा था. आपने कहा कि वे भारत के गोर्की होते-होते रह गए? इन दोनों स्थितियों तक आने का मुख्य कारण क्या रहा?
उनमें एक फांक पैदा हो गई. गोर्की में वो फांक नहीं है. गोर्की की रचनात्मकता और वैचारिकता में इतनी बड़ी दूरी नहीं है जितनी इनके बीच में है. वे सोचते एक तरह से थे और लिखते दूसरी तरह से थे. ये फांक लगभग वही है जो निर्मल वर्मा में दिखाई देती है. विचारों के रूप में वे शुद्ध हिन्दूवादी हैं, शुद्ध आध्यात्म वगैरह से जुड़े.अभी निर्मल ने जो कुछ कहा गुजरात वगैरह की स्थिति के बारे में, अप्रत्यक्ष रूप से यह सवाल था कि उस परिवेश से आप कहां तक प्रभावित हैं तो उन्होंने लगभग तरह-तरह की भाषाओं में वह कहा जो हमारे संत लोग कहते रहे हैं कि ये तो माया है. यह बाहरी दुनिया है. इस भ्रम में तो आदमी को नहीं रहना चाहिए.मनुष्य का वास्तविक क्षेत्र तो आत्मा है. उसे इसी का अनुसंधान करना चाहिए, लगभग यही बात कही अपनी आधुनिक भाषा में. दूसरी वे जिस भारतीयता की बात करते हैं उस भारतीयता का कहीं कोई पता उनके रचनात्मक लेखन में नहीं है. सिर्फ कुछ कर्मकांड हैं, कुछ अंधविश्वास हैं, तो वह भी उनके 'अंतिम अरण्य' उपन्यास में. कहीं कोई भारतीयता का जि नहीं है. एक कोलोनियल पास्ट है, गिरजे हैं, चर्चे हैं, कब्रिस्तान हैं, भुतहे खंडहर हैं, एकांत हैं, पुराने मकान हैं, बूढ़े लोग हैं, अपने में कैद बिल्कुल एक पश्चिमी अकेले, आइसोलेटेड आदमी का, एक्ज़ाइल्ड आदमी की मानसिकता का चित्रण है.अब वे भारतीय संस्कृति की बात करते हैं.अब ये जो द्वैत है, जो अन्तर्विरोध है बहुत ज्यादा मुखर और विकट रूप में शैलेश मटियानी में दिखाई देता है. लगभग मेरी लड़ाइयां रही हैं उनके विचारक व्यक्तित्व से और भयंकर प्रशंसक रहा हूं मैं उनके रचनात्मक लेखन का. मैंने उनकी कहानियां छाप दीं और जिन लेखों को नहीं छापा उनको लेकर उन्होंने मुझे गालियां भी दी हैं.जिस स्तर पर वे लेखों में उतर जाते थे वह मुझे बर्दाश्त नहीं होता था.
धर्मवीर भारती के द्वारा 'धर्मयुग' में एक पर्चा छाप दिए जाने को लेकर मटियानी ने भारती पर मुकदमा कर दिया था. भारती की वह कौन सी व्यक्तिगत रंजिश थी जिसको लेकर 'धर्मयुग' में एक मामूली पर्चे को इतनी तरजीह दी गई थी.
मटियानी उस समय इंदिरा गांधी की इमरजेंसी के खिलाफ थे. धर्मवीर भारती आदि उनके समर्थक थे. बाद में जो पार्टी बने- जगदीश पीयूष, रवीन्द्र कालिया-ये सारे लोग.रवीन्द्र कालिया तो उस समय संजय ंसंह के दोस्त थे जो बाद में जनता पार्टी में आ गए थे. तो एक तरह से एक खुंदक थी कि यह आदमी क्यों इतना खुलकर बोलता है. मैं उस समय इमरजेंसी या ऐसी किसी एटीट्यूड के खिलाफ था जिनका समर्थन भारती कर रहे थे जो मेरी समझ में नहीं आ रहा था. पता ही होगा कि मसला क्या था. संजय गांधी मलिक मुहम्मद जायसी की समाधि पर फूल चढ़ा रहे हैं.एक दूसरे फोटो में शैलेश मटियानी भी जायसी की समाधि पर फूल चढ़ा रहे हैं. दोनों फोटो को एक पर्चे पर छापकर नीचे लिख दिया गया 'बादशाह तुम जगत के जग तोम्हार मोहताज'. ये अलाउद्दीन खिलजी के लिए लिखा गया था. लगता ये था कि ये सारे लेखक संजय गांधी की प्रशस्ति बोल रहे हैं कि 'बादशाह तुम जगत के और जग तोम्हार मोहताज.'
मटियानी का कहना था कि ये दो अलग अलग समय के चित्र हैं. इसके बीच में डेढ़ वर्ष का अंतर है. संजय गांधी के साथ कुछ लेखक फूल चढ़ा रहे हैं और कुछ लेखक अलग चित्र में जायसी की समाधि पर फूल चढ़ा रहे हैं. दोनों को एकसाथ देकर यह भ्रम पैदा किया है कि ये दोनों एक ही समय के चित्र हैं. और फिर इसको भारती ने समर्थन दिया था. उनका आग्रह सिर्फ यह था कि भारती इसको लेकर क्षमा मांगें. व्यक्तिगत रूप से नहीं, लिखित रूप से. भारती ने नहीं माना. रजिस्टर्ड नोटिस दिए, लोगों से कहलाया और अंत में जाकर मुकद्मा कर दिया और मुकदमा कर दिया तो टाइम्स आफ इंडिया वर्सेज़ शैलेश मटियानी हो गया.
आपने पिछले साल उनके निधनोपरांत कहा था कि वे एकमात्र ऐसे लेखक हैं जिनकी 10-12 कहानियां विश्वस्तरीय हैं. क्या वे सचमुच एकमात्र ऐसे लेखक हैं?
एकमात्र नहीं, वे उन कहानीकारों में हैं जिनके पास सबसे अधिक संख्या में 10-12 की संख्या में ए-वन कहानियां हैं. प्रेमचंद सहित हम सब के पास 5-6 से ज्यादा टॉप की कहानियां नहीं हैं. जो कहानी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्वस्तर पर खड़ी हो सके. मेरे पास 2-4, भारती और राकेश के पास दो चार होंगी. बाकी की सभी एक मिनिमम स्टैंडर्ड हैं परंतु जिसे आउटस्टैंडिंग कहानी कहते हैं वो नहीं है. उनके पास सबसे ज्यादा हैं. हमलोगों में सबसे ज्यादा प्रतिभाशाली आदमी.उनमें अनुभव की आग और तड़प है. हमलोग कहीं न कहीं बुकिश हो जाते हैं. ये जिंदगी से उठाई गई कहानियां लिखते थे.
उनका एक अद्भुत उपन्यास है 'गोपुली गफरन'. सुना है न . गोपुली पहाड़ की एक ब्राह्मण महिला है. धीरे-धीरे वह भगा कर मैदान में लायी जाती है और गफूरन बना ही जाती है. उसको जितनी आत्मीयता, संवेदना और अंडरस्टैंडिंग के साथ उन्होंने लिखा है, लेकिन बाद में किस तरह से मुसलमानों के खिलाफ लिखने लगे. 'इब्बू मलंग' उन्हीं की कहानी है. उन लोगों को जितनी भीतरी अंडरस्टैंडिंग, सिम्पैथी दी है वो वैचारिकता में उनका नाश करने वाली है.
उनकी कहानी की दुनिया मार्जिनलाइज़्ड की दुनिया है. गरीबों की दुनिया है. वह खुद जाति व्यवस्था से पीड़ित रहे. पहाड़ से भगा दिए गए. विचार की दुनिया में वे उसी का समर्थन करते हैं. ये भगाए गए थे इसलिए कि ये प्रॉपर ढंग से क्षत्रिय भी नहीं थे. कसाई थे. इनके परिवार में कसाई का काम होता था. यह उनको तकलीफ देता था. वहां के ब्राह्मणों ने मिलकर भगाया था. एक ब्राह्मण लड़की से प्रेम हो गया था जिस कारण उन्हें अल्मोड़ा छोड़ना पड़ा. उनकी जान को खतरा हो गया था.वो लड़की इनके अगेंस्ट हो गई थी.जो लड़की इनसे प्रेग्नेंट हो गई थी वही खुद इनके अगेंस्ट हो गई. उसने कहा था कि यह बहकाकर-भगाकर मैदान में उसे बेचना चाहता था. तो जाति व्यवस्था के कारण उन्होंने इतनी यातना बर्दाश्त की.बाद में वेे इसी वर्णव्यवस्था का समर्थन करने लगे. वे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ने बारे में बोलते हैं जो वर्णव्यवस्था का दूसरा रूप है. मेरी लड़ाई इसी बात से थी कि आप अपनी जिंदगी के अनुभवों से कहानी तो लिख सकते हैं परंतु सोच कुछ नहीं सकते. अक्सर उनसे मेरी भयंकर लड़ाइयां हैं. चिट्ठियां भी हैं. उनके मेरे पत्रों की ढाई-तीन सौ पृष्ठों की एक किताब है. और भी इतनी और चिट्ठियां रखी हैं कि एक दो किताबें और बन जाएं.
अंत में वे पागल हो गए. छह सात बार ऐसा भी हुआ कि उन्हें जंजीरों में पकड़कर बांधकर रखना पड़ता था. लगभग यही स्थिति स्वदेश दीपक की थी.सात साल पागल रहा.इलाज हुआ उसका. उसने 'कोर्ट मार्शल' लिखा है. अभी उसने पागलपन की स्थिति पर अद्भुत संस्मरण लिखा है जिसमें से एक अभी 'कथादेश' में छपा था. यानी उस पीरियड को भी कैसे रचनात्मक ढंग से इस्तेमाल किया जा सकता है यह स्वदेश दीपक का अनुभव बताता है.
निराला, भुवनेश्वर, मुक्तिबोध और अब मटियानी क्या इन सबके साथ जो कुछ हुआ उसको देखकर ऐसा नहीं लगता कि एक लेखक सहायता कोष बनाया जाना चाहिए ताकि उन लेखकों को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए राजनेताओं-अफसरों की चिरौरी न करनी पड़ी?
शुरू में मेरा एक कहानी संग्रह निकला था- 'देवताओं की मूर्ति' और अभी संस्मरण की किताब आई है- 'वे देवता नहीं हैं'. दोनों में अद्भुत साम्य है. उसमें भी एक ऐसे लेखक का चित्रण है जो देवतापन से आक्रांत है कि वह सबसे अलग है, महान है आदि. हम लोग एक तरह से उन्हें देवताओं की मूर्तियों की तरह स्थापित कर देते हैं.
इन सभी की ट्रेजेडी यह है कि जितने प्रतिभाशाली ये थे इतनी मान्यता उन्हें नहीं मिली, उतनी स्वीकृति नहीं मिली. उससे भी ज्यादा तकलीफ इस बात की है कि जिनमें कम प्रतिभा थी वो लोग अपने संपर्कों से, साधनों से, तिकड़मों से टॉप पर चले गए. ये एक स्थिति है जिससे मेरा ख्याल है मुक्ति संभव नहीं है. उपेक्षा का क्षेत्र और अनपेक्षित लोगों का जरूरत से ज्यादा अवसरों का दोहन. भुवनेश्वर जैसा ब्रिलियंट राइटर जो 'कारवां', 'भेड़िये' जैसी कहानी लिख सकता था. निराला, मटियानी के साथ भी यही हुआ.
मेरा प्रश्न था आर्थिक सहायता कोष के ढंग का कुछ बनाया जा सकता है.
आर्थिक सहायता भी जरूरी है परंतु उनकी समस्या आर्थिक नहीं है. आर्थिक सहायता का महत्त्व है या आर्थिक सहायता भी होनी ही चाहिए. मुझे नहीं मालूम कि ऐसा मेरे साथ होता तो क्या होता. लेकिन हमलोगों को इन सभी पर सहानुभूति से सोचना चाहिए. ये वाकई अनचैरिटेबल और अनसिम्पैथेटिक होगा कि अपनी इन स्थितियों के लिए वे खुद जिम्मेदार थे.
इसी संबंध में उनके द्वारा गोविंद मिश्र को लिखे पत्र का एक अंश याद आता है कि खासकर वामपंथी आलोचक लेखकों ने उनके लिए वे सारे दरवाजे बंदकर दिए जहां से उन्हें आर्थिक सहायता मिल सकती थी.
वे लोग उनकी सहायता कैसे कर सकते थे. साहित्य अकादेमी में उनकी स्मृति में गोष्ठी के लिए हॉल मांगा गया. उन्होंने यह कहते हुए हॉल देेने से मना कर दिया कि जो व्यक्ति जीवन भर अकादेमी की आलोचना करता रहा उसके लिए वे कैसे हाल दे सकते हैं. इसमें कहां से वामपंथ आ गया. चूंकि वामपंथी उनके विचारों को मान्यता नहीं देते थे इसलिए उन्हें शिकायत थी. इसलिए उन्हें लगता था कि जो उनका विरोध कर रहा है वह वामपंथी है. भारती कौन से वांमपंथी थे? जगदीश पीयूष कौन से वामपंथी थे? गलत ढंग से चीजों को अपने लिए बिन्दु कर लेने की एक मानसिकता एक पैरानोइया हो जाता है. भारती का तो दुश्मन भी नहीं कह सकता कि भारती वामपंथी थे और सबसे बड़ी सुप्रीम कोर्ट तक चलने वाली लड़ाई भारती से ही हुई.
आपको मटियानी की एक सबसे अच्छी कहानी और एक सबसे अच्छा उपन्यास चुनने को कहा जाए तो आप कौन सा चुनेंगे.
अगर मुझसे पूछा जाए तो मैं उनकी सबसे अच्छी कहानी 'अर्द्धांगिनी' को मानूंगा. उपन्यासों में तय करना थोड़ा सा मुश्किल है फिर भी 'बोरीवली से बोरीबंदर तक'.
'अर्धांगिनी' में स्त्री पुरूष के बीच का जो डेलिकेट रिलेशन है उसे उन्होंने बहुत ही लिरिकल ढंग से रखा है. बंबई के फुटपाथों की जिंदगी को 'बोरीवली से बोरीबंदर तक' में लिखा है जिसके लिए बाद में 'मुरदाघर' के रचनाकार जगदंबा प्रसाद दीक्षित मशहूर हुए. बाद में वे भी बीजेपी में चले गए. सारी वैचारिक घोषणाओं के बावजूद आज भी वे माले का अपने को कहते हैं परंतु समर्थन वे हिंदुत्व का, शिवसेना का करते हैं.
Monday, April 21, 2008
शाहरुख़ हिंदी भी लिखते हैं...
अब लीजिए इस पूरी घटना की पड़ताल अपने पत्रकारिता के फाइव डब्ल्यू व वन एच वाले मुहावरे या हिन्दी के 6क से किया जाए. यानी हू, ह्वाट, ह्वेयर, ह्वेन, व ह्वाए तथा हाव. यानी कौन, क्या, कहाँ, कब व क्यों तथा कैसे. बताया जाता है कि इन प्रश्नों की पड़ताल से हम मुद्दे की सारी मौलिक जानकारियां पा सकते हैं. तो आजमाएँ.
पहला सवाल उठता है कि हू यानी कौन लिख रहा है. जाहिर है शाहरुख़ यानी किंग ख़ान लिख रहे हैं. शाहरुख़ को बोलते बहुत लोगों ने सुना है. अगर किसी चीज को दिल से चाहो तो पूरी क़ायनात....!!! लंबे लंबे डायलाग बोलते सुना है. मगर ये लिख रहे हैं जाहिर है दिनचर्या से हटकर बात है. हालांकि इन सितारों की दिनचर्या भी समाचार की सुर्ख़ियाँ बनती हैं और यह तो दिनचर्या से हटकर बात थी. वे लिख रहे हैं, शाहरुख़ लिख रहे हैं.
दूसरा सवाल है ह्वाट यानी क्या. किंग ख़ान क्या लिख रहे हैं. किंग ख़ान हिन्दी लिख रहे हैं. परम आश्चर्य और इसलिए समाचार बनने की ख़ूबियों से युक्त. चूंकि हिन्दी में लिख रहे हैं इसलिए यह महत्वपूर्ण हो गया है. अग्रेजी में लिखते तो दिनचर्या होती. शाहरुख़ हिन्दी में लिख रहे थे वाकई समाचार बनने वाली बात इसमें हैं. किंग ख़ान सिर्फ हिन्दी बोलना नहीं जानते बल्कि लिखना भी जानते हैं. पाँचवी पास लोग भी हिन्दी लिखना जानते हैं या कहें कि पाँचवी पास के पास जाने के लिए हिन्दी में लिखना जरूरी है.
तीसरा सवाल है ह्वेयर यानी कहाँ. यह सवाल भी दमदार है. शाहरुख़ हिन्दी लिख रहे हैं लेकिन कहाँ लिख रहे हैं? मौका था शाहरुख़ ख़ान की पाँचवीं पास एक्सप्रेस को मुंबई के बांद्रा इलाके से हरी झंडी दिखाने का और वहाँ शाहरुख़ को हिन्दी लिखना पड़ा. चौथी जिज्ञासा है ह्वेन यानी कब. जवाब है कल. कल इसलिए क्योंकि उनका क्या आप पाँचवीं पास से तेज़ हैं कार्यक्रम 25 अप्रैल से शुरू होने वाला है और उन्हें पाँचवीं पास एक्सप्रेस को झंडी दिखानी की जल्दी थी. पांचवी जरूरत ह्वाए यानी क्यों को जानने की है. उन्हें हिन्दी में क्यों लिखना पड़ा? वह इसलिए कि उन्हें कार्यक्रम का प्रचार-प्रसार करना है और इसलिए उन्हें हिन्दी में ही लिखना था.
अब आखिरी मगर महत्वपूर्ण प्रश्न बच जाता है कि उन्होंने हिन्दी हाव यानी कैसे लिखा. शाहरुख़ ने एक बड़ी-सी शीट पर, जिसके एक ओर एयरटेल के लोगो थे और दूसरी ओर गुब्बारे में छिपा संभवतः स्टार का लोगो होगा, एक मोटे से हरे रंग के स्केच पेन से लिखा - 'पढ़ते रहिए...आगे बढ़ते रहिए!' लेकिन लोगों को प्यार शायद वो अंग्रेजी में ही देना चाहते हैं इसलिए lots of ....शाहरुख़ का शुक्रिया कम से कम लोगों तक एक संदेश तो जाएगा कि एक ऐसा भी करोड़पति है जो हिन्दी भी लिख लेता है!!!
Tuesday, April 15, 2008
पहले दो के पेट भरे हुए थे
यही अर्थ था. हमारे नहीं लिख पाने का कारण शायद यह है कि अगर कभी आटा गीला हो भी जाता है तो हम और आटा उसमें मिला कर संतुलित कर लेते हैं. तो क्या हम इसलिए नहीं लिख पाते हैं कि यह दर्द हमारे संदर्भों से मेल नहीं खाता...इसलिए हम अब मुहावरों का अर्थ तो समझते हैं लेकिन उसके होने के माएने नहीं जानते. इसलिए आटा तो लगातार गीला होता जा रहा है लेकिन हमारी रोटी तो बनती जा रही है.
मुझे एक कविता याद आ रही है...शायद सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की है (यदि मैं गलत होऊँ तो कृपया सुधारें)...
गोली खाकर
एक के मुँह से निकला - राम
दूसरे ने कहा - माओ
तीसरे ने बोला - रोटी
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट है
पहले दो के पेट भरे हुए थे
जाहिर है मैं खुद से इसकी उम्मीद क्यों नहीं कर सकता हूँ तो वजह साफ है. मैं उस दर्द को लिख पाऊँ कि भूख क्या होती है... मुश्किल है. मैंने मटियानी की कुछ कहानियां पढ़ी हैं...उनके संस्मरण पढ़े हैं. लेकिन उनकी लेखनी से भूख की तिलमिलाहट को महसूस कर सकता हूँ. 'बुद्धिजीवियों' के बीच इस बहस को चलाने के लिए मसिजीवी को धन्यवाद.
साईं © आस्था
यूँ इसमें कोई आश्चर्य की बात होनी भी नहीं चाहिए क्योंकि धर्म से जुड़े मामलों पर कॉपीराइट का कब्जा बहुत दिनों से है. वैसे हमारे यहां चलन है, हर धर्म में चलन है ...हम धर्म को धंधे में बदल देते हैं और कुछ लोगों की बपौती में तब्दील कर देते हैं. कमोबेश सभी धर्म के कॉपीराइट कानून कॉफी सख्त रहे हैं!! कुछ जगह तो प्रयोग की भी छूट नहीं है - कौन वेद पढ़ सकता है कौन नहीं इसपर पूरी संहिताएं हैं. फिर भी पता नहीं क्यों © संकेत साईं की वीडियो पर देखकर अजीब सा लगा और लगा इसे नहीं होना चाहिए था. अरे आप यह लिख देते - आस्था की ओर से...लेकिन कॉपीराइट लिखने के बड़े खास मायने होते हैं और आप नाहक साईं के भक्तों के साईं को दूसरों को दिखाने से रोक रहे हैं. साईं न हो गए सॉफ्टवेयर के प्रोग्राम हो गए...लीजिए आजकल सॉफ्टवेयर भी क्रियेटिव कॉमन्स के तहत जारी हो रहे हैं लेकिन आस्था वालों की दुस्साहस ही हम कहेंगे कि उन्होंने साईं के भजन की वीडियो बनाई और उसका कॉपीराइट जारी कर दिया. मुझे याद नहीं कि गीताप्रेस गोरखपुर की किताबों में यह कॉपीराइट घोषणा कैसे रहती है. वैसे क्या यह रोचक नहीं होगा कि इन चीजों पर शोध किया जाए :D.
Friday, April 11, 2008
पिज़िन क्या है
पिज़िन निम्नलिखित के लिए काम करता है: AIM, Bonjour, Gadu-Gadu, Google Talk, Groupwise, ICQ, IRC, MSN, MySpaceIM QQ, SILC, SIMPLE, Sametime, XMPP, Yahoo! और Zephyr.
इस पिज़िन को लोकलाइज करने के लिए पिज़िन के डेवलेपर अनुवाद इच्छुक समुदाय का समर्थन करती है. यदि आप अपने लोकेल में इसे अनुवाद करना चाहते हैं तो सबसे पहले इस कड़ी पर देखिए इसपर पहले से तो काम नहीं हो रहा है जैसा आप किसी भी दूसरे ओपन सोर्स प्रोजेक्ट के लिए किया जाता है. फिर यदि सक्रिय रूप से काम हो रहा है या नहीं हो रहा है दोनों स्थितियों में आप पिज़िन के अनुवादक की सूची पर मेल कर सकते हैं. सूची का आईडी है translators@pidgin.im और सदस्यता आप यहां से ले सकते हैं.
यदि आपकी भाषा के लिए अबतक काम चालू नहीं हुआ है तो फिर भी आपको इसी सूची पर लिखना है कि किसी ने अबतक कोई काम शुरू तो नहीं किया है तो भी आपको इसी सूची पर मेल भेजना है. फिर अनुवाद सौंपने के लिए एक इस्यू बनाइए और अनुवाद सुपुर्द कीजिए.
जरूरी कड़ियां व संदर्भ :
पिज़िन डेवलेपर
अनुवादक के लिए सुझाव
पिज़िन अनुवादक मेलिंग लिस्ट
फाइल सौंपने के लिए इस्यू
Wednesday, April 9, 2008
तो हिन्दी कंप्यूटर का कोई भविष्य नहीं है
पहला सवाल तो यह उठता है कि यदि स्थानीयकरण का कोई भविष्य नहीं है तो फिर बड़ी कंपनियां इस रास्ते की ओर क्यों बढ़ती हैं?! यह एक ही साथ प्रश्न व विस्मय दोनों पैदा करता है. खासकर बड़ी मालिकाना स्वभाव की कंपनियों के लिए जहां लाभ ही पहली व आखिरी ख्वाहिश है, जहां हर कदम के लिए सर्वेक्षण कराए जाते हैं वह फिर इस ओर क्यों आ रही हैं. अब देखिए, याहू, एमएसएन, एओएल जैसी इंटरनेट की कई बड़ी कंपनियों ने हिन्दी सहित कई भाषाओं की ओर रूख किया है. छोड़िए कंपनियों की बात, यदि इसका भविष्य नहीं है तो फिर किसी हिन्दी डेस्कटॉप को देखकर आपके-हमारे मन खुश क्यों हो जाता है क्यों हम अपनी जिज्ञासा को दबा नहीं पाते हैं और जाकर देखते हैं कि देखूं तो कैसा दिखता है हमारा हिन्दी का डेस्कटॉप. जब अंग्रेजी जानने वाले आप जैसे लोगों का मन हिन्दी को देखकर गुदगुदाने लगता है तो फिर उनके लिए सोचिए जिन्हें ए बी सी भी नहीं आता है ;-).
कोई भी तकनीक कैसे फैलती है यह बड़े शोध का विषय है और इस पर बड़े काम भी हुए हैं. अब देखिए, जहां तक हिन्दी डेस्कटॉप की बात है तो यह कंप्यूटर अभी भी ज्यादातर उन्हीं लोगों के बीच घूम रही है जो अंग्रेजी भी जानते हैं. फर्ज कीजिए कि अंग्रेजी न जानने वाला इसे उपयोग में लाना तो फिर वह क्या करेगा. उसे तो कुंजी के A, B, C भी अनजाने लगेंगे. बीसेक साल पहले के टेलिविजन को देखें ...बेवाच की सुंदरियों का स्थान एकता कपूर की सोप-ओपेराओं ने ले लिया. उस समय के समाचार चैनल को भी याद करें...यहां तक कि दस साल पहले के समाचार चैनलों की तो आप आसानी से डेस्कटॉप व इंटरनेट पर हिन्दी की स्थिति से बहुत दुखी न होंगे. भारत के दस सबसे अखबारों में अंग्रेजी का एक ही अखबार आता है. फर्ज कीजिए यूनीकोड समर्थित फॉन्ट ही सिर्फ लोग उपयोग में लाना शुरू कर दें तो फिर कितनी हिन्दी की सामग्रियां जमा हो जाएंगी. ऐसा होना सिर्फ फर्ज करने की बात नहीं है, यह बस कुछेक सालों के अंदर होना ही है.
सच कहें तो हम अभी आधे-अधूरे स्थानीयकरण के दौर से गुजर रहे हैं और खासकर पिछले तीन-चार वर्षों की ही तरक्की इसकी विरासत है. स्थानीयकरण का अर्थ सही रूप से सिर्फ भाषा अनुवाद ही नहीं कर देना है बल्कि स्थानीयकरण कई स्तरों पर किए जाने की जरूरत है जैसे स्थानीय अंतर्वस्तु, रीति-रिवाज, संकेत प्रणाली, सॉर्टिंग, सांस्कृतिक मूल्यों व संदर्भों के साथ सौंदर्यानुभूति की दृष्टि से स्थानीयकरण की जरूरत है और धीरे-धीरे जरूर उस ओर भी बढ़ा जाएगा. और फिर दुनिया हमारी हिन्दी की होगी. मुझे तो लगता है कि यही बाजार और उदारीकरण व भूमंडलीकरण की नीतियां जो फिलहाल हमें दुखी कर रही हैं हमें और हमारी भाषा को आगे बढ़ाने में सबसे कारगर होंगी.
Tuesday, April 8, 2008
ओपनऑफिस : परिचय व लोकलाइजेशन प्रक्रिया
ओपनऑफिस स्टारऑफिस (http://www.sun.com/software/star/staroffice/index.jsp) पर आधारित है जिसे बाद में सन माइक्रोसिस्टम (http://sun.com) के द्वारा अगस्त 1999 में अधिगृहीत कर लिया गया. ओपनऑफिस एक मुक्त सॉफ्टवेयर है जो जीएनयू लेसर जनरल पब्लिक लाइसेंस के अधीन उपलब्ध किया गया है. हालांकि इसे ओपनऑफिस के रूप में ज्यादा लोकप्रिय रूप से जाना जाता है लेकिन यह ट्रेडमार्क किसी दूसरे के नाम से पंजीकृत है इसलिए इसका औपचारिक नाम Openoffice.org रखना वैधानिक जरूरत हो गई. इसका वेब साइट विधिवत तौर पर अक्टूबर 2000 में शुरू हुआ था. माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस सूट के बनिस्पत एक समस्या यहां है कि इस ऑफिस सूट में प्रोसेसिंग समय व स्मृति की अधिक खपत होती है.
ओपनऑफिस के कई घटक हैं. राइटर (Writer) माइक्रोसॉफ्ट वर्ड के तरह का वर्ड प्रोसेसर है जिसमें PDF प्रारूप में पृष्ठ को प्राप्त करने की सुविधा बिना किसी अतिरिक्त साफ्टवेयर को लगाने से प्राप्त हो जाती है. साथ ही वेब पेज संपादन की सुविधा यहां है. कैल्क (Calc) माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल के समान गुणों वाला है. इसे भी PDF फाइल में सीधे पाया जा सकता है. इम्प्रेस (Impress) प्रस्तुतिकरण प्रोग्राम है जो माइक्रोसॉफ्ट पावर प्वाइंट के समान है. अपने अन्य साथी की तरह यहां भी सीधे PDF प्राप्त किया जा सकता है. बेस (Base) डाटाबेस प्रोग्राम है जो माइक्रोसॉफ्ट एक्सेस के समान है. बेस को विभिन्न डाटाबेस के लिए फ्रंटएंड के रूप में प्रयोग किया जा सकता है. ड्रॉ (Draw) वेक्टर ग्राफिक्स एडीटर है जो कोरलड्रॉ के शुरूआती संस्करण के तरह काम करता है. यह माइक्रोसॉफ्ट पब्लिशर की तरह है. माइक्रोसॉफ्ट इक्वेशन एडीटर की तरह गणितीय सूत्रों के निर्माण व संपादन का काम मैथ (Math) करता है.
ओपनऑफिस का विकास सीवीएस के प्रयोग से होता है. सीवीएस फाइल को ट्री संरचना में संगठित करता है. इसके अनुवाद की प्रक्रिया हालांकि गनोम से भिन्न है परंतु आसान है जिसे सीखा जा सकता है. अनुवाद किसी भी संपादक पर किया जा सकता है लेकिन यह जरूरी है कि आरंभ करने के सबसे पहले यह जानना होता है कि किस संस्करण को अनुवाद किया जाना है. इसके लिए सबसे पहले dev@l10n.openoffice.org मेलिंग लिस्ट पर निश्चित कर लें कि कौन सा संस्करण चल रहा है. लेकिन यदि कोई बड़ा रिलीज हाल में होने जा रहा हो तो सबसे अच्छा हो कि आप इसी संस्करण पर काम करें. फिर जरूरत होती है फाइलों की जिसे आपको अनूदित करना है. इसे इस लिंक से लीजिए:
ftp://ftp.linux.cz/pub/localization/OpenOffice.org/devel/
यहां आप ओपनऑफिस की हर सक्रिय शाखाओं के लिए फोल्डर पाएंगे. किसी भी डायरेक्ट्री में आप दो तरह की फाइलें पाएंगे एक तो POT फाइल और दूसरी en-US.sdf फाइल. जिस शाखा के लिए आप काम करना चाहते हैं उस शाखा की आप दोनों फाइलें डाउनलोड कर लें जिसमें en-US.sdf फाइल की जरूरत आपको अनुवाद का काम खत्म करने के बाद ओपनऑफिस प्रारूप में फाइलों को बदलने में होगी.
फिर क्या है केबैबल (KBabel) या पीओएडिट (POedit) पर अनुवाद के काम में जुट जाइए. चूँकि मदद फाइलों को छोड़कर भी फाइलें काफी बड़ी हैं इसलिए लंबा समय लेता है. यह काम चूंकि महत्वपूर्ण व बड़ा है इसलिए पहले से ही शब्दावली तय कर ली जाए तो अच्छा हो.
फिर ट्रांसेलेशन टूलकिट (Translate Toolkit) को अपने कंप्यूटर में स्थापित करें जिसका उपयोग अनूदित फाइलों को ओपनऑफिस प्रारूप में बदलने में होगा. इस सबसे पहले फाइल की बैकअप कॉपी ले लें. फाइल को जांच लें कि फाइल हर तरह से सही है कि नहीं यानी उसमें टैग आदि सही ढ़ंग से हैं या नहीं. फिर फाइल को ओपनऑफिस प्रारूप में बदलने के लिए ट्रांशलेशन टूलकिट की मदद लें और po2oo औजार की मदद से अपनी फाइल को ओपनऑफिस प्रारूप में बदलें. यहां आपको en-US.sdf फाइल की जरूरत पड़ेगी जिसके पाथ को आपको इसमें बदलने के दौरान देना पड़ेगा. आपको कमांड के साथ लोकेल नाम भी देना होगा. उदाहरण लीजिए..
po2oo -i
हिन्दी के लिए यह कमांड oo-2.0-hi-GSI.sdf आउटपुट फाइल देगी. फिर उसके बाद अपनी भाषा के लिए लोकलाइजेशन प्रोजेक्ट (L10n) के अंदर एक इस्यू बनाकर फाइल सुपुर्द करें. एक इस्यू का उदाहरण देखें:
http://www.openoffice.org/issues/show_bug.cgi?id=68062
मेलिंग लिस्ट:
पहले आप openoffice.org पर अपना खाता बनाएँ और फिर नीचे की सूची से मेलिंग लिस्ट चुनें:
http://native-lang.openoffice.org/servlets/ProjectMailingListList
http://l10n.openoffice.org/servlets/ProjectMailingListList
ऊपर के दोनों प्रोजेक्ट देशीय भाषाओं में ओपन ऑफिस को लाने के काम से जुड़ी है. हिन्दी में पहले से काम चल रहा है और फिलहाल http://hi.openoffice.org टीम इस काम जिम्मा लिया हुआ है. इससे जुड़े पिछले काम के लिए इस इस्यू को देखिए, यहां से आप अनुवाद की हुई फाइलें भी ले सकते हैं:
http://www.openoffice.org/issues/show_bug.cgi?id=68062
जरूरी लिंक व संदर्भ:
http://en.wikipedia.org/wiki/OpenOffice.org
ftp://ftp.linux.cz/pub/localization/OpenOffice.org/devel/POT/
http://oootranslation.services.openoffice.org/pub/OpenOffice.org/
http://l10n.openoffice.org/
http://www.khmeros.info/tools/localization_tips.html
http://www.khmeros.info/tools/oo2.0_program_translaltion.html
http://qa.openoffice.org/localized/index.html
http://qatrack.services.openoffice.org/view.php
http://wiki.services.openoffice.org/wiki/OOoRelease30
http://wiki.services.openoffice.org/wiki/NLC:ReleaseChecklist
http://l10n.openoffice.org/L10N_Framework/ooo20/localization_of_openoffice_2.0.html
http://www.microsoft.com/globaldev/reference/lcid-all.mspx
http://www.openoffice.org/issues/show_bug.cgi?id=68062
Monday, April 7, 2008
दुनिया के 50 सबसे ताकतवर ब्लॉग
पहले नंबर पर हफिंग्टन पोस्ट , दूसरे नंबर पर बोइंग बोइंग और तीसरे नंबर पर टेकक्रंच हैं. अब टेकक्रंच को ही लीजिए इसे शुरू करने वाले माइकल एरिग्टंन का नाम वेब के पच्चीस सबसे प्रभावशाली लोगों में किया जाता है. इसकी दुनिया में एक सेक्स वर्कर की डायरी भी गर्ल विद वन ट्रैक माइंड के नाम से है जिस पर दो लाख लोग महीने में आते-जाते हैं. इसमें जापान के सबसे लोकप्रिय ब्लॉग गिगाजीन भी शामिल हैं जिसमें खान-पान, खेल-खिलौने सबकुछ शामिल है. और पढ़ना चाहते हैं...यहाँ क्लिक करें.
g11n, i18n, and l10n
localization, l10n, means the act or process of making a product suitable for use in a particular country or region, typically by translating text into the language of that country or region and, if necessary, ensuring support of non-Latin character sets. Abbreviation: l10n (numerals one and zero, for the number of characters between the 'L' and 'N' usually in lowercase.). Globalization a.k.a G11N means ensuring the availability of a software product in languages other than the language of origin. Since in software field US dominates the galaxy so language of origin is traditionally US English.
Because in British English these terms can also be spelled 'localisation', the word is occasionally abbreviated as "l10n" (the number ten between the letters l and n) because there are ten letters between its first and the last letters. This is often done in software engineering to avoid confusion over spelling of the term.
Particularly in the world after 1990's, the term Globalization has become a household word around the world. The term globalization which is used in the mainstream media generally talk about the economic globalization . We are watching the world continuously shrinking and so the process of globalization means communication across the whole world also. Internationalization and localization are means of adapting products such as publications, hardware or software for non-native environments, especially other nations and cultures.
The distinction between internationalization and localization is subtle but important. Internationalization is the adaptation of products for potential use virtually everywhere, while localization is the addition of special features for use in a specific locale. The processes are complementary, and must be combined to lead to the objective of a system that works globally.
Subjects unique to localization include:
* Language translation,
* National varieties of languages (language localization)
* Special support for certain languages such as East Asian languages
* Local customs,
* Local content
* Symbols
* Aesthetics
* Order of sorting
* Cultural values and social context
In making software products, internationalization and localization pose challenging tasks for developers, particularly if the software is not designed from the beginning having these concerns in mind. A common practice is to separate textual data and other environment-dependent resources from the program code. Thus, supporting a different environment, ideally, only requires change in those separate resources without code modification; greatly simplifying the task.
The development team needs someone who understands foreign languages and cultures and has a technical background; such a person may be difficult to find. Moreover, the duplication of resources could be a maintenance nightmare. For instance, if a message displayed to the user in one of several languages is modified, all of the translated versions must be changed. Software aiding this task are available, such as gettext.
Since open source software can generally be freely modified and redistributed, it is more prone to internationalization. Most proprietary software is only available in languages considered to be economically viable only. But the open source i18n and l10n work is gigantic.
Internationalization is sometimes used interchangeably with globalization to refer to economic and cultural effects of an increasingly interconnected world.
While internationalization most commonly refers to the addition of a framework for multiple language support, especially in software, it sometimes refers to the process whereby something (a corporation, idea, highway, war, etc.) comes to affect multiple nations. This usage is rare; globalization is preferred. Because of globalization, many companies and products are found in multiple countries worldwide, giving rise to increasing localization requirements. Localization may describe production of goods nearer to end users to reduce environmental and other external costs of globalization.
The bigger and much larger part of the world is non-English speaking people.
Not all speakers of English as a second language throughout the world are not able to use the language efficiently in their work. National language identity will remain alive. In a real-world business environment, all users need to understand application output, accurately and in real time, and not just those who happen to be initiates into the English language.
Software globalization is making software products run anywhere. Globalization is giving choices to the user to choose any of the supported languages.
Software globalization should be started from the very beginning of software making. It starts in the beginning where people can choose their very own locales.
Known in this connection as Internationalization (I18N), product developers must deliver designs that allow for such features as selectable date and currency formats, as well as dynamic resizing of buttons and boxes. Users must be able to input, view, and print data using their own character sets.
Strictly speaking, an internationalized product is not usable in any region of the world unless it is localized to that specific region. It must also speak the local language in every sense of the word. Localization (L10N) is the process of adapting an internationalized product to a specific language, script, cultural, and coded character set environment. In localization, the same semantics are preserved while the syntax may be changed. Localization goes beyond mere translation. The user must be able to not only select the desired language, but other local conventions as well. For instance, one can select German as a language, but also Switzerland as the specific locale of German. Locale allows for national or locale-specific variations on the usage of format, currency, spellchecker, punctuation, etc., all within the single German language area.
Economic and software globalization are a connected process. The real penetration of e-commerce is entirely due to the globalized software. Software companies internationalize and localize their products simply because this makes good economic sense. It is driven by huge revenue opportunities outside the Anglo phonic world for software companies and translators alike.
Abbreviation, Symbols, and Icons
It should be noted that a scientific text not only consists of words and sentences, it also contains abbreviation, symbols, and icons. Therefore it is a problem of translator how they will translate these things. For ASCII (American standard code for Information Interchange), it is good to write it accordingly as we pronunciation it but we cannot take liberty everywhere. We can translate MBBS something like औषधि एवं शल्य चिकित्सा स्नातक in Hindi but it can produce confusion. And also if abbreviation is written without giving its full meaning, then translating it making a problem.
Bibliography:
Palmer, H.E. The principles of language study
Nida, E.A. Towards a science of translation
Srivastava, R.N. भाषायी अस्मिता और हिंदी
Tiwari, B वैज्ञानिक साहित्य के अनुवाद की समस्याएं
Srivastava, R.N. अनुवाद: सिद्धांत और समस्याएं
Tiwari, B कोश विज्ञान
Pinchuk, Isadore Scientfic and technical translation
Kumar, Harish वैज्ञानिक व तकनीकी शब्दावली आयोग का इतिहास
Alen Duff Translation
Lehman, P.W. Historical Linguist: An introduction
Tiwari, B अनुवाद कला
Tiwari, B अनुवाद विज्ञान
Mudiraj, Shashi अनुवाद : मूल्य और मूल्यांकन
Newmark, Peter Approaches to Translation
Catford, J.C. A Linguistic theory of Translation
Quarterly magazines 'Anuvaad', Wikipedia, and Wiktionary... to name a few.
Friday, April 4, 2008
कंप्यूटर का मैथिलीकरण
मैथिली से जुड़े समुदाय मैथिली कंप्यूटिंग रिसर्च सेंटर ने फेडोरा ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए काम चालू कर दिया है और इसका इंस्टालर एनाकोंडा के साथ कई जरूरी फ़ाइलों को समुदाय ने अनुवाद भी कर लिया है. फेडोरा मैथिली का काम हालांकि एक बड़ा काम है और इसके लिए बड़े समुदाय की जरूरत भी है. यह जरूरत कई स्तरों पर रहती हैं अनुवाद से लेकर शब्दावली निर्माण व गुणवत्ता को बेहतर बनाने के कई कामों से जुड़ी. जाहिर है कि फेडोरा का तयशुदा डेस्कटॉप वातावरण चूँकि गनोम है इसलिए हमने गनोम को चुना है. इसमें कोई शक नहीं कि अगले चरण में हम केडीई के काम को भी हाथ में लेने की कोशिश करेंगे. मैथिली गनोम के काम से यही मुख्य समुदाय जुड़ी है और आशा रखती है कि गनोम 2.24 संस्करण के सभी जरूरी अनुप्रयोगों को लोकलाइज कर लिया जाए. इसके लिए शुरूआती स्तर के काम जैसे लोकेल निर्धारण और काम करने वाली टीम के पंजीयन का काम पूरा कर लिया है.
इसमें कोई शक नहीं कि मैथिली का एक भरा-पूरा विरासत रखती है. इसमें लिखित साहित्य भी बड़ी मात्रा में है. इस भाषा ने कई जाने माने लेखकों व कवियों को जन्म दिया है. साहित्य अकादमी ने इस भाषा को बहुत पहले से दर्जा दे रखा था लेकिन संविधान की 8 वीं अनुसूची में यह चार वर्ष पहले ही शामिल हुई है. फिर भी इस भाषा को चाहने वाले बहुत लोग हैं. इसलिए मुझे लगता है कि यह आशा करने में कोई गुनाह नहीं है कि हम जल्द ही अपनी इस समृद्ध भाषा में भी कंप्यूटर देख पाएंगे.
मुझे रविकांतजी की वो बात सराय वर्कशॉप के दौरान बहुत अच्छी लगी थी कि लिनक्स का भविष्य कम लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं के साथ ज्यादा है क्योंकि प्रोपराइटरी कंपनियां सिर्फ बाजार के इशारे पर काम करती हैं और वह इन भाषाओं को अपनाने के पहले अपने नफे-नुकसान के बारे में ज्यादा सोचेगी. हाल ही में मेरे मित्र जय पांड्या ने बताया है कि वे अपने साथियों के साथ मारवाड़ी में कंप्यूटर तैयार करने के लिए सोच रहे हैं और जल्द ही इसके लिए काम शुरू करेंगे. सचमुच, ओपन सोर्स की दुनिया में कंप्यूटर को अपनी भाषा में करने के लिए कुछ भाषा को चाहने वाले लोग चाहिए जो अपना कुछ समय दे सकें.
Thursday, April 3, 2008
जोधा यानी हिन्दी, अकबर यानी उर्दू
आशुतोष गोवारीकर को जोधा अकबर फिल्म को चाहे जिस भी कारण से लोगों ने सराहा हो, चाहे कहानी की ऐतिहासिक तथ्यों के छेड़छाड़ के कारण चर्चा में हो या फिर भव्य सेट के रूप में, चाहे जोधाबाई का किरदार ऐश्वर्या राय की नई खूबसूरती की चर्चा हो या मुगल सम्राट अकबर की भूमिका में ऋतिक रोशन की बढ़िया आवाज़ हो (जिसकी मैंने तो ऋतिक से कल्पना नहीं की थी), ...जो चीज मुझे सबसे ज्यादा बुरी लगी वह यह कि फिल्म शुरू होने के साथ ही मैंने देखा कि स्क्रीन पर जोधा हिन्दी में लिखा आ रहा है और अकबर उर्दू में या यूँ लें हिन्दी व उर्दू की लिखी जानेवाली लिपि में. आशुतोष गोवारीकर एक अच्छे निर्देशक हैं ऐसी किसी अवधारणा को यहीं दम तोड़ना चाहिए. और यह भी बताती हैं कि आशुतोष ने कितनी गैर जिम्मेदारी से फिल्म बनाई है.
रहने दीजिए कि जोधा किसकी बीबी थी जहांगीर कि या अकबर की, लेकिन जोधा जिस समय थीं उस समय शायद ऐसे कोई अंतर नहीं थे कि जोधा जो हिन्दू थी उसका मतलब हिन्दी भी था...कम से कम वह अंतर तो मुझे उन्नीसवीं सदी के पहले तो नहीं दिखाई देता है. जोधा का हिन्दू से मतलब तो हम समझ सकते हैं और अकबर से मुसलमान की लेकिन मुझे यह बहुत ही गैर जिम्मेदाराना लगा कि आशुतोष गोवारीकर अपनी इस समझ को अंततः हिन्दी व उर्दू से जोड़ दें. यही बताती हैं कि आशुतोष की एक अच्छे फिल्मकार के रूप में संभावनाएं काफी कम हैं हालांकि यह संभव है कि वे फिल्म इंडस्ट्री के कुछ खास ट्रिक से अपनी फिल्में हिट व विवादित करते रहें.
मुझे लगता है कि हिन्दी को हिन्दुओं और उर्दू को मुसलमानों से जोड़ने में अंग्रेजों व कुछ राजनायिकों की सफलता ने दोनों भाषाओं का जितना बुरा किया है
उतना शायद किसी और कारण ने नहीं. इस कारण हिन्दी ने जहां लोक से जुड़ने के अपने सामर्थ्य को खो दिया, वहीं उर्दू ने वह लोक ही खो दिया जिसकी बदौलत वह जिन्दा थी. प्रयोग के स्तर पर देखें तो हिन्दी व उर्दू एक-दूसरे की सबसे बड़ी ताकत बन सकते थे लेकिन हुआ उल्टा. मैं इसमें नहीं जाना चाहता कि कैसे उर्दू का विकास वास्तविक गंगा-जमुना संस्कृति की ही देन थी और कैसे वह मध्यकाल की सेनाओं के बीच विकसित हुई. लेकिन आशुतोष को इतना जरूर समझना चाहिए कि हिन्दी व उर्दू का धर्मों से यह जुड़ाव आज की चीज है और लेकिन कास्टिंग के बाद के शुरूआती पन्ने पर जोधा-अकबर को हिन्दी और उर्दू में लिखकर उन्होंने भारी ऐतिहासिक भूल की है.
हिन्दी को उर्दू के बजाय संस्कृत (जिसकी नसीहत संविधान में भी दी गई है) से जोड़कर हमने बड़ी भूल की है...समन्वय की तहज़ीब से जन्मी हमने एक ऐसी भाषा को खुद से अलग कर दिया जो हिन्दी को एक ऐसी नजाकत व लचीलापन दे सकती थी जिसके अभाव के कारण हिन्दी का प्रयोग खासकर अनुवाद की विभिन्न स्थितियों में हास्यास्पद दिखता है और उर्दू के शब्द अब हम अपना नहीं सकते क्योंकि हमने अपनी आदतें बदल लीं हैं. विषयांतर से अगर बचूं तो फिर कहना चाहूँगा कि आशुतोष गोवारीकर ने शुरूआत में पर्दे पर ऐसा लिखा दिखाकर वास्तव में अकबर की समन्वयवादी तौर-तरीकों के साथ अन्याय ही किया है.
Wednesday, April 2, 2008
Translate or Die!
And that very confusion can also become a barrier in the process of actual penetration of IT, as more than 80 per cent of the population of the world speaks a language other than English. Today open source world are eroding the layers of the "confusion of tongue" by helping to create desktops in the languages people can understand. With more and more computer users shifting towards Linux, the demand for localized interfaces has gone up for non-English speaking users. The power of IT is coming to people in their own language. It is very exciting, but not a simple task at all. And of course translators are the main driving force that is making the globe a real global village. Basically information highway is now highway because of the effort of translators. Therefore, it is generally told that the whole civilization is the borrower of translator for its own existence. We can say that it was not entirely possible to see the today's world as it is in present condition without the translators efforts.
After the process of economic globalization translation is playing more vital role. In 1985, Paul Angel wrote in a collection named Writing from the world II that when the world is continuously contracting like a ripe orange and all the population of different culture are coming closer then on this new earth, the deciding statement for the remaining year will be as simple and straight forward like this: Either translate or die! The process of economic globalization has opened stream of opportunities for the translator and language related persons. So come forward to become the conductor of the process of economic liberalization and globalisation.
The example of oldest translation is on Rosetta Stone which belongs to 2nd century BC. Some of the earlier major work of translation happened to translate the religious books only. In ancient Greeks there were two type of theory for the translation of Bible, one was Philological theory of translation and second was Inspirational theory of translation. While in first type a translator should be aware of both the source language and target language, second type stressed on that this type of 'good' work couldn't be possible without the inspiration of the God. Here, in the world of open source a person with the combination of both the said type is necessary. Inspiration is also necessary here apart from having knowledge of both the source and target languages, a inspiration to work for the open world of open source which is all good and democratic for the masses in broader sense giving masses the power of ownership. So be inspired! And start working to bring the world closer. Let us start translation. But be cautious! We have very big responsibility, responsibility of giving power of IT to the masses! So before starting translation, please just wait for some more posts on issue of translation...
Tuesday, April 1, 2008
फायरफॉक्स व थंडरबर्ड : स्थानीयकरण प्रक्रिया
वेब ब्रॉउजर एक ऐसा सॉफ्टवेयर अनुप्रयोग होता है जो प्रयोक्ताओं को वेब पृष्ठों पर स्थित पाठ, चित्र, वीडियो, संगीत आदि को दिखाने और उसके साथ अंतःक्रिया करने में समर्थ बनाता है. वेब ब्रॉउजर वेब सर्वर के साथ संचार करता है जो HTTP का प्रयोग वेब पृष्ठों को लाने के लिए करता है. इंटरनेट एक्सप्लोरर, फायरफॉक्स, सफारी, ओपेरा, नेटस्केप कुछ लोकप्रिय ब्रॉउजर हैं. इंटरनेट एक्सप्लोरर, फायरफॉक्स, और सफारी का क्रमशः बाजार में हिस्सा लगभग क्रमशः 75, 17 और 6 प्रतिशत है. फायरफॉक्स ओपनसोर्स में उपलब्ध काफी लोकप्रिय ब्रॉउजर है जिससे पिछले कुछ बर्षों में इंटरनेट एक्सप्लोरर के बाजार हिस्सा का बड़ा भाग हड़प लिया है. यहां हम फायरफॉक्स की ही मुख्यतः चर्चा करेंगे क्योंकि यही मुक्त श्रोत में उपलब्ध है और साथ ही कई महत्वपूर्ण सुरक्षा संबंधी दृष्टिकोण से लैस है.
मोजिला का फायरफॉक्स काफी लोकप्रिय ब्रॉउजर में से है. पिछले कुछ सालों में इसकी लोकप्रियता में इजाफा ने तो इंटरनेट एक्सप्लोलर को भी अपनी परंपरागत सुविधाओं से अलग काफी कुछ जोड़ने पर विवश किया है. यह ब्रॉउजर ओपन सोर्स का ब्रॉउजर है और इसमें कई सारे ऐसे अतिरिक्त सुविधाओं को जोड़ा जा सकता है जो प्रयोक्ताओं के कामों को काफी आसान बना देता है.
यदि आप फायरफॉक्स को अपनी भाषा में स्थानीयकृत करना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि आप जाँच लें कि पहले से स्थानीयकरण का यह काम पूरा हो चुका है अथवा कोई दूसरी टीम इस काम में लगी तो नहीं है. फायरफॉक्स के लिए काम कर रही टीमों की सूची आप यहाँ से मोजिला के विकि पेज से हासिल कर सकते हैं http://wiki.mozilla.org/L10n:Localization_Teams. आप इस पृष्ठ पर जाकर देख सकते हैं कि कौन सी टीम आपकी भाषा के लिए काम कर रही है या कि अबतक कोई काम शुरू नहीं हो पाया है. कुछ गैर आधिकारिक दल यानी वे जो फायरफॉक्स के स्थानीयकरण के लिए अपना पंजीयन दर्ज नहीं किया है भी फायरफॉक्स लोकलाइजेशन पर काम करती है. यदि अनुवाद के लिए टीम पहले से मौजूद है तो आप भी स्वयं को उस टीम के साथ जोड़े जाने का आग्रह उस टीम के कोआर्डिनेटर से कर सकते हैं.
यदि फायरफॉक्स अनुवाद के लिए टीम मौजूद नहीं है तो आप एक नयी टीम उस भाषा के लिए शुरू कर सकते हैं. आप टीम का सेटअप mlp-staff@mozilla.org पर मेल भेजकर कर सकते हैं. उस मेल में आपकी टीम के कोआर्डिनेटर का नाम व ईमेल पता होना चाहिए. एकबार मोजिला ट्रांसलेशन टीम से स्वीकृत होने पर आपकी टीम को आधिकारिक फायरफॉक्स टीम के साथ जोड़ दिया जायेगा. फायरफॉक्स व थंडरबर्ड पर काम करने के लिए यदि आप सीवीएस का अभिगम चाहते हैं तो http://www.mozilla.org/hacking/getting-cvs-write-access.html पर जाकर सीवीएस खाते के लिए दरख्वास्त दे सकते हैं. हर टीम से प्रायः सिर्फ एक ही व्यक्ति को सीवीएस अधिकार मिलता है.
फायरफॉक्स CVS सर्वर पर चलता है. कोई भी फाइल को डाउनलोड कर सकता है मगर कुछ ही व्यक्ति जिनको कमिट का अधिकार मिला हुआ है फाइल को अनुवाद कर उसे कमिट कर सकता है. इसी कारण से जाहिर है कोआर्डिनेटर का सीवीएस से परिचित होना निहायत ही जरूरी है. CVS ट्री से फाइलें लेकर और फिर अनुवाद करने के बाद उसे वापस CVS को सौंपकर हम फायरफॉक्स को अपनी भाषा में करने का काम कर सकते हैं. फाइलें पीओ प्रारूप में नहीं उपलब्ध रहती हैं इसलिए हम उसे किसी भी पाठ संपादक पर अनुवाद का काम कर सकते हैं.इस कार्य में ट्रंक व शाखाओं का ध्यान रखना जरूरी है. संभवतः हर मुक्त श्रोत के विकास का कार्य इस तरह की प्रक्रिया से जुड़ा रहता है. यदि आपने xpi डाउनलोड किया है तो आप इन फाइलों को पीओ फाइल में बदलकर अनुवाद कर सकते हैं लेकिन यहां पुनः आपको इस पीओ फाइल को dtd या properties फाइल में बदलना होगा. अनुवाद की शुद्धता की जांच अनुवाद को सीवीएस सर्वर को सौंपे जाने के पहले कर लेना चाहिए. यहां dtd या properties फाइलों में पीओ फाइल की बनिस्पत ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत होती है. अनुवाद करने के बाद विधिवत जांच करके फाइल को फायरफॉक्स समुदाय में सौंपने की जरूरत है.
स्थानीयकरण की प्रक्रिया:
en-US को अज्ञात रूप से ही चेकआउट करें:
-> cvs -d:pserver:anonymous@cvs-mirror.mozilla.org:/cvsroot co -r MOZILLA_1_8_BRANCH mozilla/client.mk (Firefox 2 के लिए) या
-> cvs -d:pserver:anonymous@cvs-mirror.mozilla.org:/cvsroot co mozilla/client.mk (Firefox 3/TRUNK के लिए)
-> cvs -d:pserver:anonymous@cvs-mirror.mozilla.org:/cvsroot co mozilla/tools/l10n
-> cd mozilla
-> MOZ_CO_PROJECT=browser make -f client.mk l10n-checkout (firefox फाइल के चेकआउट के लिए)
-> MOZ_CO_PROJECT=mail make -f client.mk l10n-checkout (thunderbird फाइल के चेकआउट के लिए)
अपनी भाषा के लिए क्लोन बनाएं
-> MOZ_CO_PROJECT=browser make -f tools/l10n/l10n.mk create-ab-CD (firefox के लिए)
-> MOZ_CO_PROJECT=mail make -f tools/l10n/l10n.mk create-ab-CD (thunderbird के लिए)
अपनी भाषा से en-US की तुलना करें और उसी अनुसार अनुवाद करें
-> एक .mozconfig फाइल निम्नलिखित सामग्री से बनाएं (ab-CD को अपनी भाषाकोड-देशकोड से बदलें)
. $topsrcdir/browser/config/mozconfig MOZ_OBJDIR=@TOPSRCDIR@/../ab-CD MOZ_CO_LOCALES=ab-CD
-> make -f tools/l10n/l10n.mk check-l10n
अथवा
-> cd mozilla; cvs up -d testing
-> cd mozilla/testing/tests/l10n
-> cvs up -A
-> python setup.py install (इस कमांड को सुपरयूजर के रूप में चलाएं(रूट), जो नवीनतम 'compare-locales' स्क्रिप्ट को आपकी मशीन में संस्थापित कर देगा)
-> cd parent_dir
-> compare-locales hi-IN
यदि फाइल सीवीएस से लिया गया है तो फाइल को सीवीएस में सौंपना होता है. प्रायः हर भाषा समुदाय से एक व्यक्ति को सीवीएस में पहुंच दिया जाता है और इसके लिए सीवीएस की जानकारी जरूरी होती है. तो आपको अपने अनुवाद को सीवीएस में सौंपना होता है. फिर उसके बाद प्रोडक्टाइजेशन की प्रक्रिया (सर्च, RSS रीडर्स, फीड) एक बग के माध्यम से शुरू होती है. फिर अपनी भाषा के नाइटली बिल्ड को टिंडरबाक्स (http://ftp.mozilla.org/pub/mozilla.org/firefox/tinderbox/) पर पाने के लिए एक बग फाइल करना चाहिए. फिर आखिर में अपनी भाषा को mozilla.com/firefox/all.html page पर लाने के लिए एक अलग बग https://bugzilla.mozilla.org/ पर फाइल करें.
यदि आपने अनुवाद का स्वयं ही पैकेज तैयार कर लिया है तो आप इसे mlp-staff@mozilla.org को भेज सकते हैं जो अपनी साइट पर इसे रखते हैं ताकि दूसरे लोग इसका फायदा उठा सकें. भाषा पैक तैयार करने का तरीका यहां दिया गया है:
http://developer.mozilla.org/en/docs/Creating_en-X-dude#Create_a_language_pack
अन्य जरूरी लिंक:
http://wiki.mozilla.org/L10n:Teams
http://wiki.mozilla.org/L10n:Home_Page
http://wiki.mozilla.org/L10n:Localization_Process
http://developer.mozilla.org/en/docs/Creating_en-X-dude
http://developer.mozilla.org/en/docs/Create_a_new_localization
http://tinderbox.mozilla.org/showbuilds.cgi
http://ftp.mozilla.org/pub/mozilla.org/firefox/tinderbox/
http://ftp.mozilla.org/pub/mozilla.org/firefox/nightly/
http://people.mozilla.com/~axel/status-1.8/
http://www.mozilla.org/hacking/form.html
http://wiki.mozilla.org/Firefox3/Schedule
http://www.mozilla.com/en-US/firefox/all.html
http://www.mozilla.com/en-US/thunderbird/all.html
irc.mozilla.org पर IRC चैनल: #l10n , #mozilla.in (भारतीय भाषाओं के लिए)
मेलिंग लिस्ट:
यह मेलिंग लिस्ट मोजिला लोकलाइजेशन के लिए काम करती है. भारतीय भाषाओं के लिए हालांकि दूसरी अलग सूची भी है परंतु इससे भी जुड़े रहें क्योंकि यही सबसे प्रमुख मेलिंग लिस्ट है. इससे जुड़ने के लिए इस वेब पृष्ठ को खोलें: https://lists.mozilla.org/listinfo/dev-l10n
भारतीय भाषाओं के लिए उपरोक्त सूची में https://lists.mozilla.org/listinfo/dev-l10n-in पर जाकर शामिल हों.
समाचार समूह: ( सर्वर - news.mozilla.org ) mozilla.dev.l10n और mozilla.dev.l10n.in (भारतीय भाषाओं के लिए ).