पुणे पुलिस की साइट को गणपति विसर्जन के दौरान यातायात व्यवस्था को जानने के लिए अगर आप क्लिक करें तो आपको खुशी होगी कि खासकर तब जब आप फ़ायरफ़ॉक्स को पसंद करते हैं तो ज्यादा होगी क्योंकि साइट संदेश देता है कि यह साइट इंटरनेट एक्सप्लोरर पर नहीं चलता है और आप फ़ायरफ़ॉक्स का उपयोग करें. आपने अबतक ऐसी कई साइटें देखी होगी जो इंटरनेट एक्सप्लोरर के लिए ऐसी घोषणा करती है और आप परेशान होते हैं और गर विंडोज के यूजर हैं तो आप एक्सप्लोरर खोलते हैं. यहाँ उल्टा है...यह साइट अपनी समर्थित साइट में केवल फ़ायरफ़ॉक्स मानती है.
अच्छा-बुरा क्या कहें लेकिन चलिए इसे फ़ायरफ़ॉक्स की लोकप्रियता का एक सबूत मानते हैं...
Thursday, September 16, 2010
Monday, September 6, 2010
नवनीता देव सेन से बातचीत

लोकलाइजेशन के क्षेत्र में कूदने के पहले मैं पत्रकार हुआ करता था और उस दौरान कई लेखकों, कलाकारों के मैंने साक्षात्कार लिए थे. उसी में से एक महत्वपूर्ण साक्षात्कार मैंने नवनीता देव सेन का लिया था, लिटिल मैगजीन की संपादिका उनकी पुत्री के मयूर विहार दिल्ली के आवास पर. आप इसे पढ़ें. उम्मीद है पसंद करेंगे.
पहला भाग:
इतिहास, समाजशास्त्र और साहित्य की रिक्तताओं को भर रही हैं लेखिकाएँ – नवनीता देव सेन
दूसरा भाग:
राजनैतिक महिलाएँ मर्दों के ही खेल खेल रही हैं – नवनीता देव सेन
Wednesday, September 1, 2010
फ़ायरफ़ॉक्स मैथिली में तैयार है...
जाना-माना लोकप्रिय वेब ब्राउज़र फ़ायरफ़ॉक्स मैथिली में तैयार है. हमलोगों कुछ वर्ष पहले मैथिली में पूरा का पूरा कंप्यूटर तैयार करने की आकांक्षा पाली थी और खुशी है कि हम इसे पूरा कर पा रहे हैं. इसका उपयोग कीजिए और बताइए कि कहाँ-कहाँ हम इसे सुधार सकते हैं.
हम पहले ही फेडोरा, गनोम, केडीई जैसे मुक्त स्रोत सॉफ़टवेयरों को मैथिली में ला चुके है. फ़ायरफ़ॉक्स लोकप्रिय है. उम्मीद है कि मैथिली जानने वाले लोग हमें अपने सुझावों के रूप में योगदान देंगे.
डाउनलोड करें —
फ़ायरफ़ॉक्स मैथिली - विंडोज़ मशीन के लिए
फ़ायरफ़ॉक्स मैथिली - लिनक्स मशीन के लिए
फ़ायरफ़ॉक्स मैथिली - मैक मशीन के लिए
अगर आप संस्थापित नहीं करना चाहते हैं तो उदाहरण के लिए आप विंडोज वाली लिंक डाउनलोड करें और अपने पहले के खुले फ़ायरफ़ॉक्स बंद कर अनजिप करके फ़ायरफ़ॉक्स चलाएँ.
अधिक विकल्पों के लिए लोकेल नाम mai खोज कर यहाँ से डाउनलोड करें.
आपके सुझाव की प्रतीक्षा में
— मैथिली कंप्यूटरीकरण टीम
हम पहले ही फेडोरा, गनोम, केडीई जैसे मुक्त स्रोत सॉफ़टवेयरों को मैथिली में ला चुके है. फ़ायरफ़ॉक्स लोकप्रिय है. उम्मीद है कि मैथिली जानने वाले लोग हमें अपने सुझावों के रूप में योगदान देंगे.
डाउनलोड करें —
फ़ायरफ़ॉक्स मैथिली - विंडोज़ मशीन के लिए
फ़ायरफ़ॉक्स मैथिली - लिनक्स मशीन के लिए
फ़ायरफ़ॉक्स मैथिली - मैक मशीन के लिए
अगर आप संस्थापित नहीं करना चाहते हैं तो उदाहरण के लिए आप विंडोज वाली लिंक डाउनलोड करें और अपने पहले के खुले फ़ायरफ़ॉक्स बंद कर अनजिप करके फ़ायरफ़ॉक्स चलाएँ.
अधिक विकल्पों के लिए लोकेल नाम mai खोज कर यहाँ से डाउनलोड करें.
आपके सुझाव की प्रतीक्षा में
— मैथिली कंप्यूटरीकरण टीम
Wednesday, November 18, 2009
अब देखिए ये लोग कहते हैं कि भारत में अंग्रेजी का प्रसार धीमा है...
अब देखिए ये लोग कहते हैं कि भारत में अंग्रेजी का प्रसार धीमा है...
"रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में अंग्रेज़ी भाषा का प्रसार अत्यंत धीमा है जो भारत को उन देशों की तुलना में पीछे कर सकता है जिन्होंने प्राइमरी स्तर पर अंग्रेजी की पढ़ाई को बेहतर ढंग से लागू किया है.
इतना ही नहीं रिपोर्ट के अनुसार देश में अंग्रेज़ी पढ़ाने वाले शिक्षकों की कमी है जिससे राष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेज़ी भाषा जानने वालों की संख्या तेज़ी से नहीं बढ़ रही है."
अब कितना बढ़ाना चाहते हैं भारत में अंग्रेजी को ये लोग...यानी हम अगर हिंदी को भूल जाएँ तो शायद सबसे अधिक आर्थिक प्रगति होगी.
"रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में अंग्रेज़ी भाषा का प्रसार अत्यंत धीमा है जो भारत को उन देशों की तुलना में पीछे कर सकता है जिन्होंने प्राइमरी स्तर पर अंग्रेजी की पढ़ाई को बेहतर ढंग से लागू किया है.
इतना ही नहीं रिपोर्ट के अनुसार देश में अंग्रेज़ी पढ़ाने वाले शिक्षकों की कमी है जिससे राष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेज़ी भाषा जानने वालों की संख्या तेज़ी से नहीं बढ़ रही है."
अब कितना बढ़ाना चाहते हैं भारत में अंग्रेजी को ये लोग...यानी हम अगर हिंदी को भूल जाएँ तो शायद सबसे अधिक आर्थिक प्रगति होगी.
Wednesday, November 11, 2009
मैथिली कंप्यूटर के जारी होने की ख़बर आउटलुक पर
मैथिली कंप्यूटर के रिलीज होने की ख़बर आउटलुक पर आई है...थोड़ी पुरानी हो गई है लेकिन हमारे पास वह अंक अभी हाल में ही आया है. गौरतलब है कि फेडोरा, जो कि लिनक्स का एक लोकप्रिय वितरण है, के साथ अब मैथिली भाषा भी समर्थित रूप में रिलीज हो रही है. यह वाकई मैथिली के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि कई तथाकथित रूप से अधिक महत्वपूर्ण भाषाओं में अभी तक यह काम संभव नहीं हो पाया. कई तकनीकी समस्याओं से आगे बढ़ते हुए करीब दस लाख शब्दों के अनुवाद ने हमें सुकून तो जरूर दिया है कि हमने मैथिली भाषा के लिए कुछ कर पाया है. धन्यवाद के पात्र हैं इनसे जुड़े लोग खासकर संगीता, पराग, राकेश, अमन आदि. जाने माने पत्रकार और आउटलुक के संपादक नीलाभ जी का बहुत बहुत शुक्रिया.
Wednesday, November 4, 2009
www.हिंदी.भारत या www.हिन्दी.भारत
मुझे पूरी तरह पता नहीं आईडीएन पर कितना ब्लॉग (रवि रतलामी जी और कुछेक लोगों का तो पढ़ा है) लिखा गया है फिर भी सोचता हूँ कि यह जानकारी आपसे साझा करनी चाहिए. अभी पिछले सप्ताह सीडैक के द्वारा आयोजित आईडीएन की जागरूकता कार्यशाला में पूरे दिन बैठा था और वहां पर .in के लिए आईडीएन में टॉप लेबल डोमेन के लिए जारी किए गए मसौदा नीति दस्तावेज़ पर चर्चा हुई थी और वहीं मुझे पता चला कि .in का भारतीय भाषाओं में स्थानापन्न .भारत आया है अलग अलग भाषाओं में लिप्यंतरित रूप में. लेकिन www बरकरार है हालांकि बताया गया कि विश्व की कुछ दूसरी भाषाओं ने कुछ ववव की तरह का अपनाया है और इसे यहाँ भी अपनाया जा सकता था. वैसे मुझे तो जगत जोड़ता जाल यानी जजज काफी बढ़िया लगता है लेकिन www को नहीं छेड़ा गया है. हालांकि ब्राउज़र में अब इसे लिखने की जरुरत नहीं रह गई है फिर भी यदि किसी को लगे तो वे अपना फीडबैक तो उन तक पहुँचा ही सकते हैं.
आईडीएन खासकर टॉप लेबल डोमेन के रूप में काफी नई चीज़ होगी और चूँकि .in का नियंत्रण भारत सरकार के हाथ में है तो सरकार के पास इनके अंतरराष्ट्रीयकृत स्वरूप का अधिकार है. हालांकि अन्य जीटीएलडी यानी .कॉम जैसी संभावनाएँ भी दूर नहीं हैं. उक्त मसौदा नीति दस्तावेज़ में कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं कि हम ZWJ और ZWNJ को नहीं दाखिल कर पाएंगे और साथ ही कुछ एक समान दिखने वाले संयुक्ताक्षर यानी होमोग्राफ जैसी चीजें जो कि वेबसाइट पर धोखाधड़ी को बढ़ावा दे उसे भी दाखिल नहीं कर पाएंगे. इसका कारण है कि डोमेन नाम अपने स्थान पर इतना छोटा दिखता है कि कोई सामान्य उपयोक्ता अंतर शायद न कर पाए और वह किसी चक्कर में आ जाए. यहां देखना जरूरी होगा कि हिंदी और हिन्दी को color और colour की तरह दो भिन्न रूप में बुक किया जा सकता है. इन नियमों के अंतर्गत ही हम रजिस्ट्री पर किसी भी डोमेन की बुकिंग के लिए आवेदन कर पाएंगे. कुछ खासा तकनीकी बातें हैं जिसे आप उनके मसौदे पर जाकर देख सकते हैं.
यह देखना वाकई सुकून देने वाला तो होगा ही कि हम अपना डोमेन नाम भी अपनी भाषा में रख सकते हैं. बस अपना अपना डोमेन नाम बुक करने के लिए कमर कस लीजिए.
आईडीएन खासकर टॉप लेबल डोमेन के रूप में काफी नई चीज़ होगी और चूँकि .in का नियंत्रण भारत सरकार के हाथ में है तो सरकार के पास इनके अंतरराष्ट्रीयकृत स्वरूप का अधिकार है. हालांकि अन्य जीटीएलडी यानी .कॉम जैसी संभावनाएँ भी दूर नहीं हैं. उक्त मसौदा नीति दस्तावेज़ में कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं कि हम ZWJ और ZWNJ को नहीं दाखिल कर पाएंगे और साथ ही कुछ एक समान दिखने वाले संयुक्ताक्षर यानी होमोग्राफ जैसी चीजें जो कि वेबसाइट पर धोखाधड़ी को बढ़ावा दे उसे भी दाखिल नहीं कर पाएंगे. इसका कारण है कि डोमेन नाम अपने स्थान पर इतना छोटा दिखता है कि कोई सामान्य उपयोक्ता अंतर शायद न कर पाए और वह किसी चक्कर में आ जाए. यहां देखना जरूरी होगा कि हिंदी और हिन्दी को color और colour की तरह दो भिन्न रूप में बुक किया जा सकता है. इन नियमों के अंतर्गत ही हम रजिस्ट्री पर किसी भी डोमेन की बुकिंग के लिए आवेदन कर पाएंगे. कुछ खासा तकनीकी बातें हैं जिसे आप उनके मसौदे पर जाकर देख सकते हैं.
यह देखना वाकई सुकून देने वाला तो होगा ही कि हम अपना डोमेन नाम भी अपनी भाषा में रख सकते हैं. बस अपना अपना डोमेन नाम बुक करने के लिए कमर कस लीजिए.
Sunday, September 13, 2009
हिंदी माँ है तो अंग्रेजी वाइफ
मैं हिंदी पर एक व्यक्ति के वक्तव्य को भूल नहीं पा रहा हूँ जिन्होंने बस यूँ ही अनौपचारिक बातचीत में बस झुंझलाते हुए कह डाला था कि हिंदी माँ है लेकिन अंग्रेजी वाइफ का दर्जा पा चुकी है. और वह माँ भी अब उसके साथ नहीं रहती है दूर दराज किसी गांव में रहती है जिसकी याद वह कभी-कभार कर लिया करता है. आज अचानक यह बात फिर बहुत जोर से याद आई क्योंकि बीच रात में कुत्तों की बिना वजह (मेरी दृष्टि में) भौंकने की आवाज से जब नींद ने बीच में ही साथ छोड़ दिया तो पाया कि लैपटॉप का कैलेंडर आज के दिन को चौदह सितंबर बता रहा है.
मुझे, खासकर आज, उस व्यक्ति की बात सही लगती है. थोड़ी चुभती भी है लेकिन बहुत हद सही भी लगती है. क्या हिंदी सचमुच उन माँओं के तरह है जो अंग्रेजी वाइफ की वजह से अपने ही द्वारा सजे संवारे गए घरों से बाहर है. बेटों को उसकी याद तो आती है लेकिन क्या करेगा वाइफ के बिना कितने दिन रहेगा...अब वही तो उसका भविष्य है. उसी के साथ उसका उठना, बैठना, कहना, सुनना है. वही अंग्रेजी तो है जो उसकी आमदनी में कुछ जोड़ती है. हिंदी तो खर्चे की ही घर है. वह लाएगी क्या, उस पर उल्टा खर्च ही करना पड़ेगा. रहने दो उसे गांव में. वहाँ इलाज, रहने-सहने का खर्चा भी कम ही है. जब भी दिल को थोड़ी-बहुत अपने कमीनेपन का एहसास होगा तो कुछ मनीऑर्डर कर दूँगा. अब देखिए वह इस शहर में आकर क्या करेगी. रोज की बीवी से झगड़े कौन सहे. पिज्जा, बर्गर को कोक पेप्सी के साथ को वह खाती नहीं है. ब्रेड-मैगी से उसे उबकाई आती है. फिर कौन उसके लिए रोटी, सब्जी बनाए. किसे फुरसत है. बीवी को. फिर, वह बड़े लोगों के तौर-तरीके भी तो नहीं जानती है. अब उसे क्या-क्या पढ़ाऊँ. जब वह बोलती है तो लोग उसका मजाक बनाते हैं, उसकी बात को सुनते ही नहीं. उसके पोते-पोती भी तो नहीं समझते उसकी बात को. हँसते हैं उसपर. हाँ उसने जन्म दिया है लेकिन उसका क्या. अगर साथ रहा तो जिंदगी ही आफत. अगर उसके साथ जिंदगी चलाने की सोचूं तो आप समझ सकते हैं क्या क्या दिक्कत होगी. शायद जी ही ना पाऊँ. ऐसा नहीं है मैं उसे प्यार नहीं करता. आखिर माँ है मेरी. उसकी कोख से ही मेरे जैसे बुद्धिमान व्यक्ति का जन्म हुआ है. लेकिन क्या करता. आगे बढ़ने थे. सो थाम लिया हाथ. उसे हमारी संस्कृति का सलीका नहीं आता था. मिनी माइक्रो पहनती थी. लेकिन आज मैं जिस ऊँचाई पर हूँ उसी की वजह से हूँ. जीभ और जी को इन चीजों का अभ्यास तो नहीं था लेकिन क्या करता. मरता क्या न करता. लेकिन आज थोड़ा दुखी भी हूँ...आज मेरी माँ का जन्म दिन है. फोन किया था...माँ बीमार है. बूढ़ी तो हो ही गई है...डर लगता है!
मेरे इस ब्लॉग की इस टिप्पणी को भी अगर आप हिंदी दिवस के लिए किए जा रहे एक अनुष्ठानों में से एक मानें तो मुझे कोई गुरेज नहीं होगा. लेकिन मैं डर तो जरूर गया हूँ...आज इतना तो जरूर करना चाहूँगा कि मेरे ब्लॉग पर जो कुछ अंग्रेजी के अंश दिखाई दे रहे हैं...उन्हें मैं हटा दे रहा हूँ. मालूम है कि इससे उनकी की तबीयत में सुधार तो नहीं होगा फिर भी...!
मुझे, खासकर आज, उस व्यक्ति की बात सही लगती है. थोड़ी चुभती भी है लेकिन बहुत हद सही भी लगती है. क्या हिंदी सचमुच उन माँओं के तरह है जो अंग्रेजी वाइफ की वजह से अपने ही द्वारा सजे संवारे गए घरों से बाहर है. बेटों को उसकी याद तो आती है लेकिन क्या करेगा वाइफ के बिना कितने दिन रहेगा...अब वही तो उसका भविष्य है. उसी के साथ उसका उठना, बैठना, कहना, सुनना है. वही अंग्रेजी तो है जो उसकी आमदनी में कुछ जोड़ती है. हिंदी तो खर्चे की ही घर है. वह लाएगी क्या, उस पर उल्टा खर्च ही करना पड़ेगा. रहने दो उसे गांव में. वहाँ इलाज, रहने-सहने का खर्चा भी कम ही है. जब भी दिल को थोड़ी-बहुत अपने कमीनेपन का एहसास होगा तो कुछ मनीऑर्डर कर दूँगा. अब देखिए वह इस शहर में आकर क्या करेगी. रोज की बीवी से झगड़े कौन सहे. पिज्जा, बर्गर को कोक पेप्सी के साथ को वह खाती नहीं है. ब्रेड-मैगी से उसे उबकाई आती है. फिर कौन उसके लिए रोटी, सब्जी बनाए. किसे फुरसत है. बीवी को. फिर, वह बड़े लोगों के तौर-तरीके भी तो नहीं जानती है. अब उसे क्या-क्या पढ़ाऊँ. जब वह बोलती है तो लोग उसका मजाक बनाते हैं, उसकी बात को सुनते ही नहीं. उसके पोते-पोती भी तो नहीं समझते उसकी बात को. हँसते हैं उसपर. हाँ उसने जन्म दिया है लेकिन उसका क्या. अगर साथ रहा तो जिंदगी ही आफत. अगर उसके साथ जिंदगी चलाने की सोचूं तो आप समझ सकते हैं क्या क्या दिक्कत होगी. शायद जी ही ना पाऊँ. ऐसा नहीं है मैं उसे प्यार नहीं करता. आखिर माँ है मेरी. उसकी कोख से ही मेरे जैसे बुद्धिमान व्यक्ति का जन्म हुआ है. लेकिन क्या करता. आगे बढ़ने थे. सो थाम लिया हाथ. उसे हमारी संस्कृति का सलीका नहीं आता था. मिनी माइक्रो पहनती थी. लेकिन आज मैं जिस ऊँचाई पर हूँ उसी की वजह से हूँ. जीभ और जी को इन चीजों का अभ्यास तो नहीं था लेकिन क्या करता. मरता क्या न करता. लेकिन आज थोड़ा दुखी भी हूँ...आज मेरी माँ का जन्म दिन है. फोन किया था...माँ बीमार है. बूढ़ी तो हो ही गई है...डर लगता है!
मेरे इस ब्लॉग की इस टिप्पणी को भी अगर आप हिंदी दिवस के लिए किए जा रहे एक अनुष्ठानों में से एक मानें तो मुझे कोई गुरेज नहीं होगा. लेकिन मैं डर तो जरूर गया हूँ...आज इतना तो जरूर करना चाहूँगा कि मेरे ब्लॉग पर जो कुछ अंग्रेजी के अंश दिखाई दे रहे हैं...उन्हें मैं हटा दे रहा हूँ. मालूम है कि इससे उनकी की तबीयत में सुधार तो नहीं होगा फिर भी...!
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