मुझे पूरी तरह पता नहीं आईडीएन पर कितना ब्लॉग (रवि रतलामी जी और कुछेक लोगों का तो पढ़ा है) लिखा गया है फिर भी सोचता हूँ कि यह जानकारी आपसे साझा करनी चाहिए. अभी पिछले सप्ताह सीडैक के द्वारा आयोजित आईडीएन की जागरूकता कार्यशाला में पूरे दिन बैठा था और वहां पर .in के लिए आईडीएन में टॉप लेबल डोमेन के लिए जारी किए गए मसौदा नीति दस्तावेज़ पर चर्चा हुई थी और वहीं मुझे पता चला कि .in का भारतीय भाषाओं में स्थानापन्न .भारत आया है अलग अलग भाषाओं में लिप्यंतरित रूप में. लेकिन www बरकरार है हालांकि बताया गया कि विश्व की कुछ दूसरी भाषाओं ने कुछ ववव की तरह का अपनाया है और इसे यहाँ भी अपनाया जा सकता था. वैसे मुझे तो जगत जोड़ता जाल यानी जजज काफी बढ़िया लगता है लेकिन www को नहीं छेड़ा गया है. हालांकि ब्राउज़र में अब इसे लिखने की जरुरत नहीं रह गई है फिर भी यदि किसी को लगे तो वे अपना फीडबैक तो उन तक पहुँचा ही सकते हैं.
आईडीएन खासकर टॉप लेबल डोमेन के रूप में काफी नई चीज़ होगी और चूँकि .in का नियंत्रण भारत सरकार के हाथ में है तो सरकार के पास इनके अंतरराष्ट्रीयकृत स्वरूप का अधिकार है. हालांकि अन्य जीटीएलडी यानी .कॉम जैसी संभावनाएँ भी दूर नहीं हैं. उक्त मसौदा नीति दस्तावेज़ में कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं कि हम ZWJ और ZWNJ को नहीं दाखिल कर पाएंगे और साथ ही कुछ एक समान दिखने वाले संयुक्ताक्षर यानी होमोग्राफ जैसी चीजें जो कि वेबसाइट पर धोखाधड़ी को बढ़ावा दे उसे भी दाखिल नहीं कर पाएंगे. इसका कारण है कि डोमेन नाम अपने स्थान पर इतना छोटा दिखता है कि कोई सामान्य उपयोक्ता अंतर शायद न कर पाए और वह किसी चक्कर में आ जाए. यहां देखना जरूरी होगा कि हिंदी और हिन्दी को color और colour की तरह दो भिन्न रूप में बुक किया जा सकता है. इन नियमों के अंतर्गत ही हम रजिस्ट्री पर किसी भी डोमेन की बुकिंग के लिए आवेदन कर पाएंगे. कुछ खासा तकनीकी बातें हैं जिसे आप उनके मसौदे पर जाकर देख सकते हैं.
यह देखना वाकई सुकून देने वाला तो होगा ही कि हम अपना डोमेन नाम भी अपनी भाषा में रख सकते हैं. बस अपना अपना डोमेन नाम बुक करने के लिए कमर कस लीजिए.
3 comments:
'जजज' का सुझाव बहुत बढ़िया है।
हाल में www.तरकश.com है जो www.तरकश.भारत हो सकता है. ऐसे में ड्ब्ल्यू फिर भी बना रहेगा. यानी पूरे मजे से वंचित.
बहुत इंतजार किया. अब www से तो निजात दिलाओ. जजज बहुत अच्छा सुझाव है. लागू करवाओ.
Post a Comment