मैं हिंदी पर एक व्यक्ति के वक्तव्य को भूल नहीं पा रहा हूँ जिन्होंने बस यूँ ही अनौपचारिक बातचीत में बस झुंझलाते हुए कह डाला था कि हिंदी माँ है लेकिन अंग्रेजी वाइफ का दर्जा पा चुकी है. और वह माँ भी अब उसके साथ नहीं रहती है दूर दराज किसी गांव में रहती है जिसकी याद वह कभी-कभार कर लिया करता है. आज अचानक यह बात फिर बहुत जोर से याद आई क्योंकि बीच रात में कुत्तों की बिना वजह (मेरी दृष्टि में) भौंकने की आवाज से जब नींद ने बीच में ही साथ छोड़ दिया तो पाया कि लैपटॉप का कैलेंडर आज के दिन को चौदह सितंबर बता रहा है.
मुझे, खासकर आज, उस व्यक्ति की बात सही लगती है. थोड़ी चुभती भी है लेकिन बहुत हद सही भी लगती है. क्या हिंदी सचमुच उन माँओं के तरह है जो अंग्रेजी वाइफ की वजह से अपने ही द्वारा सजे संवारे गए घरों से बाहर है. बेटों को उसकी याद तो आती है लेकिन क्या करेगा वाइफ के बिना कितने दिन रहेगा...अब वही तो उसका भविष्य है. उसी के साथ उसका उठना, बैठना, कहना, सुनना है. वही अंग्रेजी तो है जो उसकी आमदनी में कुछ जोड़ती है. हिंदी तो खर्चे की ही घर है. वह लाएगी क्या, उस पर उल्टा खर्च ही करना पड़ेगा. रहने दो उसे गांव में. वहाँ इलाज, रहने-सहने का खर्चा भी कम ही है. जब भी दिल को थोड़ी-बहुत अपने कमीनेपन का एहसास होगा तो कुछ मनीऑर्डर कर दूँगा. अब देखिए वह इस शहर में आकर क्या करेगी. रोज की बीवी से झगड़े कौन सहे. पिज्जा, बर्गर को कोक पेप्सी के साथ को वह खाती नहीं है. ब्रेड-मैगी से उसे उबकाई आती है. फिर कौन उसके लिए रोटी, सब्जी बनाए. किसे फुरसत है. बीवी को. फिर, वह बड़े लोगों के तौर-तरीके भी तो नहीं जानती है. अब उसे क्या-क्या पढ़ाऊँ. जब वह बोलती है तो लोग उसका मजाक बनाते हैं, उसकी बात को सुनते ही नहीं. उसके पोते-पोती भी तो नहीं समझते उसकी बात को. हँसते हैं उसपर. हाँ उसने जन्म दिया है लेकिन उसका क्या. अगर साथ रहा तो जिंदगी ही आफत. अगर उसके साथ जिंदगी चलाने की सोचूं तो आप समझ सकते हैं क्या क्या दिक्कत होगी. शायद जी ही ना पाऊँ. ऐसा नहीं है मैं उसे प्यार नहीं करता. आखिर माँ है मेरी. उसकी कोख से ही मेरे जैसे बुद्धिमान व्यक्ति का जन्म हुआ है. लेकिन क्या करता. आगे बढ़ने थे. सो थाम लिया हाथ. उसे हमारी संस्कृति का सलीका नहीं आता था. मिनी माइक्रो पहनती थी. लेकिन आज मैं जिस ऊँचाई पर हूँ उसी की वजह से हूँ. जीभ और जी को इन चीजों का अभ्यास तो नहीं था लेकिन क्या करता. मरता क्या न करता. लेकिन आज थोड़ा दुखी भी हूँ...आज मेरी माँ का जन्म दिन है. फोन किया था...माँ बीमार है. बूढ़ी तो हो ही गई है...डर लगता है!
मेरे इस ब्लॉग की इस टिप्पणी को भी अगर आप हिंदी दिवस के लिए किए जा रहे एक अनुष्ठानों में से एक मानें तो मुझे कोई गुरेज नहीं होगा. लेकिन मैं डर तो जरूर गया हूँ...आज इतना तो जरूर करना चाहूँगा कि मेरे ब्लॉग पर जो कुछ अंग्रेजी के अंश दिखाई दे रहे हैं...उन्हें मैं हटा दे रहा हूँ. मालूम है कि इससे उनकी की तबीयत में सुधार तो नहीं होगा फिर भी...!
6 comments:
मेरी और से तनिक संशोधन -अंगरेजी प्रेयसी और हिन्दी पत्नी ! अब इसके उपमा साम्य(analogy ) निकालिए आनद आयेगा !
गहन शोध करना पड़ेगा इसके लिये तो कि कौन पत्नी, कौन प्रेयसी और कौन माँ....
किसी भी घर में आज की पत्नी को कल मां के सारे अधिकार मिल जाते हैं .. दूसरी भाषा को क्या इस लायक समझा जा सकता है .. ब्लाग जगत में आज हिन्दी के प्रति सबो की जागरूकता को देखकर अच्छा लग रहा है .. हिन्दी दिवस की बधाई और शुभकामनाएं !!
ma ma hoti he usaki kisi se kya tulana? vah chahe gav me bhi ho par usko sahejana to hame hi hei
हिन्दी तो अपनी चिर-संगिनी, अंग्रेजी है चमकीली पड़ोसन....:)
bahut sahi baat likhi hai. aajkal aisa hi ho raha hai
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