Wednesday, July 10, 2013

मेरी पहली क़िताब - अपना कंप्यूटर अपनी भाषा में

'अपना कंप्यूटर अपनी भाषा में' मेरी पहली क़िताब है...हार्ड कॉपी :-)। अपने कंप्यूटर को आप अपनी भाषा में कर सकते हैं बस थोड़ा सा आपका जुनून चाहिए। यह किताब इसी प्रक्रिया को विस्तार से बताती है। रविकांतजी का बहुत-बहुत शुक्रिया क़िताब की प्रस्तावना के लिए। मित्र महेश भारद्वाज 
का शुक्रिया - मेरी पहली किताब छापने के लिए।

यह क़िताब मैंने माँ-पापा को समर्पित की है। पहली छपी क़िताब देखकर अच्छा लग रहा है। माँ-पापा के पैर छूकर आशीर्वाद लेने की इच्छा हो रही है।

Tuesday, July 9, 2013

फ़्यूल ज़िल्ट कॉन्फरेंस २०१३

फ़्यूल प्रोजेक्ट को करीब पाँच साल पहले मैंने शुरू किया था। पाँच साल के होने की खुशी के साथ एक बड़ी खुशी की बात है कि भाषा तकनीक के विभिन्न मुद्दों पर फ़्यूल ज़िल्ट कॉन्फरेंस का आयोजन रेड हैट और सी-डैक ज़िस्ट मिलकर कर रही है। इसमें g10n, i18n, l10n और ट्रांशलेशन से जुड़े मुद्दे पर चर्चा होगी। बतौर तकनीकी शब्दावली फ़्यूल प्रोजेक्ट के द्वारा समुदाय समर्थित और मूल्यांकित शब्दावली विभिन्न भाषा समुदाय के साथ ही कई संगठनों द्वारा मानक के तौर पर मानी जा रही है। ज्ञातव्य है कि इस प्रोजेक्ट की शुरुआत रेड हैट के द्वारा की गई थी और सी-डैक, विकिपीडिया, महाराष्ट्र सरकार समेत कई संगठनों ने इसके विकास में काफी सहयोग दिया है। फ़्यूल प्रोजेक्ट भारत सरकार के लोकलाइजेशन गाइडलाइन में बतौर संदर्भ है। इ-गवर्नेंस भारत सरकार के लोकलाइजेशन बेस्ट प्रैक्टिस गाइड में इसे स्थान मिला है। इन सारी सफलताओं के बीच हमने काफी कुछ सीखा है और हम चाहते हैं कि और भी इसका विकास हो। फ़्यूल ज़िल्ट कॉन्फरेंस २०१३ शायद इस दिशा में एक कदम होगा...हमें सीखने के लिए और दुनिया के सामने अपने मानकीकृत कार्यों को रखने के लिए जिसका विकास साझा तौर पर हुआ है जिसमें सबकी भागीदारी है। फ़्यूल ज़िल्ट कॉन्फरेंस २०१३ के लिए कॉल फॉर पेपर्स और शिरकत की खिड़की खोल दी गई है। इसे रेड हैट और सी-डैक द्वारा सम्मिलित रूप से आयोजित किया जा रहा है। अधिक जानकारी के लिए यहाँ देखें।

Wednesday, June 12, 2013

केवल भाषा नहीं है मैथिली, ज्ञान का समृद्ध स्रोत है यह – अजय कुमार झा

मोज़िल्ला फ़ायरफ़ॉक्स मैथिली कार्यशाला

२९ मई २०१३ को मोज़िल्ला फ़ायरफ़ॉक्स मैथिली कार्यशाला का आयोजन स्वैच्छिक रूप से मैथिली कंप्यूटर के लिए भाषा घर के अंतर्गत काम करनेवाले समुदाय द्वारा किया गया। मोज़िल्ला फ़ायरफ़ॉक्स मैथिली कार्यशाला एक पूर्ण दिवसीय कार्यशाला थी जहाँ इसके लिए काम करनेवाले समुदाय ने कुछ विशेषज्ञों के साथ फ़ायरफ़ॉक्स मैथिली से संबंधित मुद्दों और समस्याओं के बारे में विचार किया। इस कार्यशाला का उद्घटान ए.एन.सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोसल स्टडीज के प्रो. अजय कुमार झा ने किया। इस कार्यशाला की मेजबानी सिद्धांत प्रकाशन ने अपने पुनाईचक स्थित कार्यालय में किया।

उद्धाटन वक्तव्य देते हुए प्रो. अजय कुमार झा ने कहा कि यह एक नया तरह का कार्य है। आज के लिए कंप्यूटर टाइपिंग पैड की तरह है। उन्होंने कहा कि केवल भाषा नहीं है बल्कि एक समृद्ध ज्ञान का स्रोत है। पंजाबी, तमिल, नेपाली की तरह यह भाषा दो देशों की भाषा है। उन्होंने कहा कि मैथिली क्षेत्र एक जातीय सौहाद्र का क्षेत्र है। उन्होंने बताया कि हमने यानी मैथिली भाषी क्षेत्र ने मुख्यधारा से अपने को इतना अधिक स्वेच्छा से जोड़ लिया कि हम अपने अस्तित्व को ही छोड़ दिया। यूनेस्को को मैथिली जैसी भाषा को आगे बढ़ाने के लिए आगे आना चाहिए। कंप्यूटर पर मैथिली का आना एक बड़ी उपलब्धि है और इस कार्य का प्रचार प्रसार होना चाहिए। उन्होंने सिद्धांत प्रकाशन के तत्वावधान में हुए इस काम की सराहना की।

इस कार्यशाला में फ़ायरफ़ॉक्स मैथिली ट्रांसलेथन का भी आयोजन किया गया जिसमें फ़ायरफ़ॉक्स मैथिली के लिए काम करनेवाली समुदाय ने फ़ायरफ़ॉक्स के नवीनतम रिलीज के लिए जरूरी बचे अनुवाद कार्य को भी पूरा किया। गौरतलब है कि फ़ायरफ़ॉक्स पहले से ही आधिकारिक रूप से मैथिली में रिलीज किया जा चुका है और सार्वजनिक रूप से निःशुल्क उपयोग के लिए उपलब्ध है। इसके लिए काम कर रहे लोगों ने फ़ायरफ़ॉक्स की मैथिली में उपलब्धता के प्रचार प्रसार के लिए काम करने पर जोर दिया। यह महसूस किया गया कि फ़ायरफ़ॉक्स की मैथिली में मौजूदगी की जानकारी बड़े जन-समुदाय को नहीं है। इसके लिए उपस्थित लोगों ने अनुवाद के लिए जरूरी भाषायी संसाधन, मसलन ट्रांसलेशन स्टाइल गाइड, की उपलब्धता को बढ़ाए जाने पर जोर दिया ताकि अनुवाद की गुणवत्ता में सतत सुधार किया जा सके। इस प्रकार के आयोजन की आवृति बढ़ाए जाने पर कार्यक्रम में जोर दिया गया जिसमें फ़ायरफ़ॉक्स के साथ ही समग्र मैथिली कंप्यूटर की बेहतरी के लिए काम किया जा सके। 


जय प्रकाश, मनोज कुमार, प्रभास रंजन, ब्रजराज कुमार, राकेश कुमार, प्रतिभा कुमारी, निवेदिता कुमारी और हृदयानंद झा ने कार्यशाला में भाग लिया और अपना विचार व्यक्त किया.  इस कार्यशाला की समाप्ति राकेश रोशन के धन्यवाद ज्ञापन से हुई।

Saturday, September 15, 2012

मोम की मूरतें नहीं हैं ये

जब वूमोज़ यानी वूमेन मोज़िल्ला के लिए प्रियंका और हेमा ने अपनी बात स्लाइडों के माध्यम से रखनी शुरू की उसी वक्त मैं वूमोज़ के लिए हिन्दी का क्या छोटा-सा शब्द बन सकता है सोच रहा था। महिला मोज़िल्ला यानी ममो या फिर मोज़िल्ला महिला यानी मोम। ममो – अच्छा नहीं लगता। मोम! थोड़ी-सी हंसी भी आ गयी थी इस संयोग पर। तबतक प्रियंका सवाल खड़े कर रही थीं कि फ़ॉस में महिलाओं की शिरकत कम क्यों हैं वह भी महज दो फीसदी? क्या इसके लिए महिलाएँ ही ज़िम्मेदार हैं या फिर पुरूषों के दिमागी आग्रह उन्हें यहाँ भी पीछे धकेल देते हैं? सवाल ज़ायज हैं और ये सवाल फ़ॉस में मौज़ूद उन पुरूष गीकों से किए गए हैं जो ओपन सोर्स को ज़म्हूरियत की पाठशाला मानते हैं। और जवाब भी उन्हीं पुरूषों को देने हैं। सवाल को धौंस के साथ पूछने के लिए हेमा और प्रियंका का शुक्रिया। निश्चित रूप से फक्त मोम की मूरतें नहीं हैं ये।

कल मोज़िल्ला के एक ज़लसे में जाना हुआ – मोज़िल्ला कार्नीवल। मैं अभी उसी ज़लसे के एक हिस्से की बात कर रहा था। मैंने भी अमन के साथ मोज़िल्ला फ़ायरफ़ॉक्स मैथिली रिलीज की पूरी कहानी – लोकेल से रिलीज बिल्ड – कही, बगज़िला के माध्यम से। फ़ायरफ़ॉक्स के रिलीज का यह तरीका नया रहा। मुझसे पहले फैज़ल ने अपनी बात रखी थी। फैज़ल ने फ़ायरफ़ॉक्स उर्दू के लिए काम कर रहीं हुदा के साथ बढ़िया काम किया है और उम्मीद है हम उर्दू फ़ायरफ़ॉक्स जल्द ही रिलीज होता देख पाएँगे। विनील से भी मिलना हुआ। सायक, सौम्या, अंकित, फैज़ल आदि के रूप में पुणे में मोज़िल्ला को अच्छे कार्यकर्ता मिले हैं और उम्मीद है हम और अच्छे कार्यक्रम इनलोगों की वजह से देख पाएँगे।

फ़ायरफ़ॉक्स के लोकलाइजेशन पर अपने प्रजेन्टेशन के बाद अमन ने विनय नेनवाणी की मदद की और उन्होंने सिंधी फ़ायरफ़ॉक्स के लिए निवेदन कर दिया है। वहीं एक मंगोलियाई उपयोक्ता भी मिला। वह परेशान था कि उसकी लिपि फ़ायरफ़ॉक्स पर सही तरीके से रेंडर नहीं होती है। उसने बताया कि लिपि ऊपर से नीचे की ओर जाती है और एक ही अक्षर के तीन-तीन रूप होते हैं जो उनकी स्थिति के अनुसार बदलते हैं यानी सबसे पहले है तो एक तरह से, बीच में है तो दूसरे तरीके से और आखिर में है तो कुछ अलग ही तरह से। वह बता रहे थे कि इंटरनेट एक्सप्लोरर इसे सपोर्ट कर रहा है जबकि फ़ायरफ़ॉक्स में यह संभव नहीं हो पा रहा है। इस समस्या को दूर किया जाना चाहिए। वह विकिपीडिया के लिए भी काम करते हैं।

Wednesday, September 12, 2012

ओपन सोर्स की ताकत, बोले तो, चैतन्य फ़ायरफ़ॉक्स ब्राउज़र अब मैथिली में भी

इसे हम ओपन सोर्स की ताकत ही कह सकते हैं कि चैतन्य फ़ायरफ़ॉक्स ब्राउज़र अब मैथिली में भी है। क्या ऐसा हम ऐसा किसी और जगह पर करने का दावा कर सकते हैं। शायद नहीं। हालाँकि यह ब्रॉउज़र काफी पहले से मैथिली में है लेकिन बीटा स्थिति से छुटकारा इसे अभी मिला है। यहाँ यह जिक्र करना जरूरी है कि सराय ने मैथिली के कंप्यूटरीकरण प्रोजेक्ट को मदद की थी और परिणाम है कि अभी केडीई, गनोम, फेडोरा, फ़ायरफ़ॉक्स, लिब्रेऑफिस, पिजिन सहित कई चीजें मैथिली उपलब्ध हैं। एक दफे रविकांतजी ने कहा था कि छोटी-छोटी भाषाओं से ओपन सोर्स जुड़ती है तो दोनों मजबूत होते हैं। हमलोग मगही, भोजपुरी, राजस्थानी जैसी भाषाओं की ओर भी बढ़ रहे हैं, यहाँ पर बढ़ सकते हैं, बेझिझक। रवि रतलामीजी ने छत्तीसगढ़ी कंप्यूटरीकरण का एक बड़ा काम पहले ही संपन्न कर लिया है।

जाना-माना फ़ायरफ़ॉक्स ब्राउज़र मैथिली भाषा में रिलीज कर दिया गया है। इसके पहले तक यह ब्राउज़र बीटा टेस्टिंग संस्करण में उपलब्ध था और इसे अब विधिवत् व आधिकारिक रूपेण मोज़िल्ला ने मैथिली के प्रयोक्ताओं के लिए जारी कर दिया है। 2000 के मुताबिक कुल मैथिली भाषी लोगों की संख्या करीब साढ़े तीन करोड़ से ऊपर है और ये सभी अपनी भाषा में इंटरनेट ब्राउज़िंग का आनंद ले सकते हैं। मोज़िल्ला फ़ायरफ़ॉक्स एक फ्री और ओपनसोर्स ब्राउज़र है जिसे मोज़िल्ला फाउंडेशन समुदाय की मदद से तैयार करती है। दुनिया की करीब चौथाई आबादी इंटरनेट चलाने के लिए मोज़िल्ला फ़ायरफ़ॉक्स का उपयोग करती है और इस लोकप्रिय ब्राउज़र अब मैथिली भाषा में उपलब्ध है। इसके पहले फ़ायरफ़ॉक्स 77 अन्य भाषाओं में रिलीज की जा चुकी है। यह जानना सुखद है कि यह मैथिली में उपलब्ध पहला ब्राउज़र है और यह विंडोज़, लिनक्स और मैक तीनों ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए उपलब्ध है। मैथिली फ़ायरफ़ॉक्स को आप यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं।

इस काम को अंजाम दिया है भाषा घर परियोजना के तरह कार्य कर रहे कुछ स्वयंसेवक। संगीता कुमारी का संयोजन राकेश रोशन, प्रतिभा के साथ बहुतेरे लोगों का योगदान रहा है। इसके तहत मैथिली कंप्यूटिंग के क्षेत्र में फेडोरा ऑपरेटिंग सिस्टम, लिब्रेऑफिस ऑफिस सूइट, मैथिली स्पेलचेकर सहित कई अन्य उपयोग अनुप्रयोगों को जारी किया जा चुका है। भाषा घर प्रोजेक्ट स्वयंसेवकों की मदद से वैसी भाषाओं पर काम करती है जो किसी सांस्थानिक समर्थन से वंचित हैं। इस संबंध में अन्य जानकारी के लिए यहाँ देखें।

हम शुक्रगुजार हैं कि इस खुशखबरी को हमारे कई ब्लॉगर साथियों, वेबसाइटों ने जगह दी है। कुछ लिंक आपको यहाँ हम दे रहे हैं-

http://raviratlami.blogspot.in/2012/08/blog-post_30.html

http://www.madhepuratimes.com/2012/09/blog-post_6.html

http://www.esamaad.com/regular/2012/09/10850

http://www.mithimedia.com/2012/08/blog-post_6080.html

http://rkjteoth.blogspot.in/2012/03/browser-search-engine.html

http://esamaad.blogspot.in/2012/08/blog-post_29.html

http://maithilaurmithila.blogspot.in/2012/08/blog-post_29.html

http://bhashaghar.blogspot.in/2012/09/blog-post.html

http://maithilputr.blogspot.in/2012/08/blog-post_9892.html

कुछ तस्वीरे साझा कर रहा हूँ -


Sunday, August 12, 2012

मराठी फ़्यूल ई-गवर्नेंस का अभिन्न हिस्सा

महाराष्ट्र सरकार के कंप्यूटिंग तकनीकी शब्दावली मानक के लिए ई-गवर्नेंस के अभिन्न हिस्से के रूप में फ़्यूल को स्वीकार किया गया है। फ़्यूल के अंतर्गत तकनीकी शब्दावली के तीन मॉड्यूल हैं – डेस्कटॉप, मोबाइल और वेब। मराठी डेस्कटॉप मॉड्यूल पहले से तैयार है और इसकी समीक्षा कार्यशाला भी सीडैक के प्रायोजन में दो साल पहले सफलतापूर्वक की जा चुकी है। यह यहाँ जोड़ना जरूरी है कि सीडैक के द्वारा डेवलेपर के लिए तैयार की गई लोकलाइजेशन गाइडलाइन में फ़्यूल प्रोजेक्ट का संदर्भ सभी भारतीय भाषाओं के लिए किया गया है।

पिछले शनिवार यानी 4 अगस्त को सीओई कार्यशाला का आयोजन मंत्रालय, मुंबई में सीडैक-जिस्ट की ओर से किया गया था। आईटी सचिव राजेश अग्रवाल ने भाषा और मानकीकरण के महत्व को रेखांकित किया और कहा कि राज्य सरकार की सभी वेबसाइटें तयशुदा रूप से मराठी में दिखेंगी। उन्होंने कॉपी-लेफ्ट के अंतर्गत विभिन्न सार्वजनिक उपयोग की सामग्रियों को जारी करने पर जोर दिया। जिस्ट, सीडैक के प्रमुख महेश कुलकर्णी ने “मानक – महत्व, मुद्दे, चुनौतियाँ और समाधान” पर विस्तार से चर्चा की। विभिन्न मानकीकरण के प्रयासों मसलन यूनीकोड, सीएलडीआर के साथ ही उन्होंने फ्यूल के प्रयासों के बारे में विस्तार से बताया। हम कुलकर्णीजी और राजेशजी को तहे दिल से धन्यवाद देते हैं। सीडैक की ओर से चंद्रकांत काफी शिद्दत से फ़्यूल से जुड़े हैं। वह मराठी स्टाइल गाइड पर भी काम कर रहे हैं।

यह ब्लॉग लिखते हुए देर हो गयी है। पिछले सप्ताह ही हमें इसकी जानकारी मिली। यह वाकई खुशी की बात है कि ओपन सोर्स के खुले और समावेशी तौर-तरीके से तैयार की गई कंप्यूटिंग शब्दावली को सरकारी उपयोग के लिए बतौर मानक के तौर पर चुना है। साथ ही मोबाइल और वेब शब्दावली को भी मान्यता मिली है और मराठी के लिए इसपर संगोष्ठी हम जल्द करनेवाले हैं। इस फ़्यूल की शुरुआत चार साल पहले रेड हैट के सहयोग से रविकांत, रवि रतलामी, गोरा मोहांती, करुणाकर, देवाशीष सहित संकर्षण, फेलिक्स, अंकित, अमन, रूना, मनोज गिरि आदि कई लोगों के साथ फ्यूल हिन्दी से हुई थी। रेड हैट के सतीश मोहन ने इसे शुरू करने के वक्त काफी हौसला बढ़ाया था। रविकांतजी सराय में अनुवाद की समीक्षा कार्यशाला इंडलिनक्स के करते आए हैं और जाहिर है हमें इससे काफी कुछ सीखने को मिला।

हर्षद गुणे, सुधन्वा जोगलेकर, चंद्रकांत डी., संदीप शेडमाके, जी करुणाकर, जयंत ओगले, रवि पांडेय, नीलेश गोवांडे, अतुल नेने, अमित कर्पे, ऋतुजा हांडे, अभिजीत भोपटकर, संकर्षण जोशी, कल्पेश लोढ़ा, निखिल कुलकर्णी, गौरीश पाटिल, वरुण देशपांडे, नम्रता सोर्टे, वैशाली कुंभार, राजन शीरसागर, अजीत अभ्यंकर, राहुल भालेराव, प्रवीण सतपुते, मधुरा आर पलसुले, सुमित डागर, ईशा चौहान, डॉ. मुकुंद जोगलेकर, शैलेश एस खांडेकर, विजय सरदेशपांडे, प्रसाद शिरगांवकर, पराग नेमाडे, अंकित पटेल, फेलिक्स आदि जाने-माने लोगों ने मराठी फ़्यूल के निर्माण में योगदान दिया है। मराठी फ़्यूल सामुदायिक विवेक के आधार पर आमसहमति से तैयार की गई शब्दावली का खूबसूरत नमूना है।

फ़्यूल अबतक 12 भारतीय भाषाओं में डेस्कटॉप से जुड़ी शब्दावलियों के मानकीकरण का काम कर चुकी है। पाँच भाषाओं में स्टाइल गाइड तैयार किया जा चुका है। और जाहिर से यह सारा काम भारतीय भाषाओं में काम कर रहे समुदायों के दम-खम पर ही हुआ है। स्वैच्छिक रूप से किए गए इन समुदाय के कार्यों के लिए फ्यूल शुक्रगुजार है। हम अनुवाद मूल्यांकन पर काम कर रहे हैं और संभव है कि जल्द ही हम एक मैट्रिक्स तैयार कर पाएँ।

Tuesday, July 10, 2012

...इन सबसे ऊपर हैं करदाता पीयूष मिश्रा!

साभार : विकिपीडिया
बीबीसी से साथ एक गप-शप में पीयूष मिश्रा कहते हैं कि वे टैक्स देते हैं इसलिए वे विरोध करेंगे। टैक्स देने और विरोध करने के बीच का संबंध पहले भी शोभा डे जैसी विदुषी हमें समझा चुकी हैं। और भी कई लोग हमें बताते रहे हैं। चूँकि मैं कम टैक्स देता हूँ, मुझे विरोध करने का कम हक है। मेरा एक भाई टैक्स नहीं दे पाता है, उसे विरोध करने का कोई हक नहीं। स्टैंड पीयूष मिश्रा कलाकार के कारण ले पाते हैं लेकिन विरोध करने का हक उन्हें टैक्स देने के कारण मिलता है। और निश्चित रूप से अनुपात के मुताबिक उन्हें विरोध करने का अधिक हक होगा। शाबाश।

पता नहीं इसे पैसे कमाने का अहंकार कहें या फिर सफलता का - जो इनलोगों को छोटी-मोटी आमदनी पर गुजारा करनेवालों अरबों लोगों पर बदतमीजी करने की छूट देती है। सबसे ताज्जुब तो है कि जो आदमी ठीक से पूंजीवादी व्यवस्था से सिंचित भारत जैसे लोकतांत्रिक समाज की वर्णमाला की समझ रखने का हकदार भी अपनी ऊपर की टिप्पणी के कारण नहीं है (कि वह टैक्स देते हैं इसलिए वह विरोध का हक रखते हैं), उनकी मार्क्सवाद पर टिप्पणी को लेकर बहस चलती है। जिन्हें टैक्स देना इतना महत्वपूर्ण लगता हो, वह मार्क्सवादी या फिर लोकतांत्रिक भी कैसे हो सकता है। वह तो साधारण और ठेठ अर्थों का लोकतांत्रिक भी नहीं हो सकता है। वह निश्चित रूप से 22 साल में भी वामपंथी नहीं रहे होंगे। उस वक्त लोकतंत्र में भी उनका विश्वास नहीं रहा होगा। यदि ऐसा होता तो वह ऐसा कभी नहीं बोल पाते। इतना आकार तो उनके विचार को लोकतंत्र या मार्क्सवाद दे ही देता। मार्क्सवाद का ककहरा भी यदि लागू हो जाए तो पीयूष मिश्रा को पता है कि उनकी आमदनी 30 हजार रूपए सालाना के आस-पास ठहरेगी। और फिर वह टैक्स नहीं दे पाएँगे। और टैक्स न दे पाए तो फिर विरोध करने का हक खो देंगे। और वह विरोध किसलिए करेंगे...जाहिर है कि टैक्स दे पाने की अपनी ठसक को बचाए रखने के लिए। गीतकार, कलाकार, लेखक इन सबसे ऊपर हैं टैक्स देनेवाला पीयूष मिश्रा - करदाता पीयूष मिश्रा।