'अपना कंप्यूटर अपनी भाषा में' मेरी पहली क़िताब है...हार्ड कॉपी :-)। अपने कंप्यूटर को आप अपनी भाषा
में कर सकते हैं बस थोड़ा सा आपका जुनून चाहिए। यह किताब इसी प्रक्रिया को
विस्तार से बताती है। रविकांतजी का बहुत-बहुत शुक्रिया क़िताब की
प्रस्तावना के लिए। मित्र महेश भारद्वाज
का शुक्रिया - मेरी पहली किताब छापने के लिए।
यह क़िताब मैंने माँ-पापा को समर्पित की है। पहली छपी क़िताब देखकर अच्छा लग रहा है। माँ-पापा के पैर छूकर आशीर्वाद लेने की इच्छा हो रही है।
का शुक्रिया - मेरी पहली किताब छापने के लिए।
यह क़िताब मैंने माँ-पापा को समर्पित की है। पहली छपी क़िताब देखकर अच्छा लग रहा है। माँ-पापा के पैर छूकर आशीर्वाद लेने की इच्छा हो रही है।
No comments:
Post a Comment