Thursday, March 5, 2009

गूढ़कील या गुड़किल्ली बनाम पासवर्ड

मैथिली फ़्यूल में कुछ बातें काफी खास रही थी.... वहाँ उपस्थित भाषाविदों व लेखकों, जिसमें गोविंद झा, अजय कु. झा, रामानंद झा रमण, मोहन भारद्वाज और रधुवीर मोची जैसे कई जाने-माने लोग उपस्थित थे - लगभग पूरे दो दिनों तक चले कार्यक्रम में - ने फ़ॉन्ट के लिए काँटा शब्द चुना...उनका कहना था कि यह शब्द काफी आम है और हम जब कंप्यूटर के जरिए प्रिंटिंग नहीं होती थी तब जब हरेक अक्षर को खुद बारी-बारी से खाँचे में बैठाना पड़ता था तो उस अक्षर को काँटा कहा जाता था. और उस समय लोग यह बोलते थे कि फलाँ काँटा काफी बढ़िया है तो फलाँ काफी खराब.

उसी तरह उनलोगों ने कूटशब्द के लिए मैथिली में गुड़किल्ली शब्द चुना. यह गूढ़कील से बना है. उन्होंने बताया कि कुम्हार के चाक में एक ऐसी गूढ़ कील होती थी जिसकी जानकारी सिर्फ उसी को रहती थी और बिना उसके चाक चलती नहीं थी. उनका तर्क दमदार था क्योंकि कमोवेश वही स्थिति कंप्यूटर के संदर्भ में भी होती है. और उन लोगों ने माना कि ऐसे शब्दों के लिप्यंतरण व शब्दानुवाद इसलिए भारतीय संदर्भ निरर्थक हैं और उसकी जड़ें जमीन में नहीं हैं.

सवाल रोचक हैं...और हमारी हिंदी के लिए भी उठते हैं. आप भी सोचें और बताएँ.

2 comments:

रवि रतलामी said...

सही बात. जमीन से जुड़े शब्द ही प्रचलन में आने पर कालांतर में अच्छे लगेंगे, भले ही अभी पासवर्ड की जगह गुड़किल्ली अजीब लगे.

Sadan Jha said...

अभी गुडकिल्ली और कांटा शव्द पढा. बहुत अच्छा भी लगा. माटी-पानी की खुशबु भी आई और वह संपदा जो भाषा और समय के प्रबाह में धीरे धीरे लुप्त होती जा रही है उसको संजोने की जिम्मेदारी का बोध भी हुआ. आपसे पहले भी इस सम्बन्ध में बात हुई थी, तब जब आप पटना से लौटे ही थे और बहुत उत्साहित भी थे.
तमाम संवेदनशीलता के साथ सवाल यह भी की क्या अनुबाद का उद्देश्य खो गए को लौटा लाना है? या फिर सम्प्रेश्नियता को बढ़ाबा देना? हममे से बहुत दोनों ही चाहते हैं. लेकिन एस्समे खतरा है. हम सम्प्रेश्नियता के साथ हमेशा समझौता करते हैं. हम एक एक्टिविस्ट के समान एक रेस्टरर का जामा पहनने लगते हैं. भाषा को समकालीनता से पीछे ले जाना चाहते हैं. यदि अंग्रेजी शव्द के बजाय लेटिन का प्रयोग कंप्यूटर में होने लगे तो कंप्यूटर भी बौटनी की तरह दुरूह हो जायेगा. वे कौन हैं जिनके लिए शव्द गढ़े जा रहे हैं? क्या हम भाषा विदों के मध्य मैथिली कम्पुटर प्रचलित करने की सोच रहे हैं? या फिर कम्पूटर महज एक माध्यम है भाषा संस्कार को लाने के लिए?
शव्द की सुन्दरता, उसकी गहनता और उसके राजनितिक अभिप्राय एक बात हैं. लेकिन यह संवेदन्शीलता सम्प्रेश्नियता पर अतिरंजना न हो.