Monday, September 22, 2008
एक हिंदी विद्यालय की मौत
शायद नेतरहाट हिंदी माध्यम का सबसे बढ़िया विद्यालय होगा, या हम जैसों की नजर से देखें जिसने उसमें पढ़ाई की है, तो उस जैसा स्कूल हो ही नहीं सकता है. परंतु गत हफ्ते टेलिग्राफ में छपे समाचार ने जो सदमा दिया है उससे उबर नहीं पा रहा हूँ. विद्यालय को पब्लिक स्कूल बनाने की प्रबंधन की कोशिश में न सिर्फ आधारढ़ांचे में बदलाव किया जा रहा है परंतु जो बदलाव होने जा रहे हैं उसमें यह भी शामिल है कि पढ़ाई लिखाई का माध्यम हिंदी से अंग्रेजी कर दिया जाए. जो भी बिहार-झारखंड से हैं वे बखूबी जानते हैं कि उस स्कूल ने शैक्षणिक गुणवत्ता की दृष्टि से वह सारी सफलता हासिल की जो कोई विद्यालय सोच भी नहीं सकता है. समाचार में कहा गया है कि यह नेतरहाट के खोए गौरव को पाने की कोशिश है. क्या किसी विद्यालय के गौरव में कमी उसके माध्यम से ही जोड़ी जा सकती है....क्या यह कोई दूसरी प्रबंधनीय असफलता नहीं है जिसकी ओर से ध्यान हटाने की कोशिश की जा रही है. क्या यह कोई और राजनीति है...क्या यह राष्ट्रविरोधी नहीं है कि एक सरकारी खर्चे से फलने फूलने वाला विद्यालय अंग्रेजी भाषा में पढ़ाई करवाने के लिए करोड़ों रूपए खर्च करे. मुझे यह भी समझ में नहीं आता है कि इतने सारे अंग्रेजी के कान्वेंट व पब्लिक स्कूलों के बीच नेतरहाट अंग्रेजी में माध्यम रख कर ही क्या हासिल कर लेगा? संभवतः कुछ भी नहीं. जो भी गौरव बचा है उसे भी हम नष्ट कर देंगे. जब भी हम किसी की नक़ल करते हैं उसी वक्त हम उन अनोखेपन को खो देते हैं जिसकी बदौलत हमारा बजूद हुआ करता है. नेतरहाट या उसके वर्तमान प्राचार्य श्रीमानजी...क्षमा करेंगे...सर, श्री...पुनः क्षमा करेंगे मि. विनोद कुमार कर्ण और विद्यालय...माफ़ी...स्कूल की मैनेजमेंट संभवतः अपना निजी हित तो हासिल कर सकती है, लेकिन लोगों का कितना भला होगा यह तो कोई भी समझ सकता . आएँ एक हिंदी विद्यालय की मौत पर शोक मनाएँ.
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7 comments:
bhai rajesh
mai bhi jharkhand me rehta hoon aur kai baar netarhat school ja chuka hoon. aapne bilkul sahi likha hai. netarhat ki khoee garima pane ke kram me sarkar raksha men hatya karne jaa rahi hai. mai aapki peeda samajh sakta hoon. apne blog par maine netarhat par kai post likhi hain. kripaya jaroor padhe.
ghanshyam
शैने शैने यह देश मर रहा है. उसके अंग-अंग जल कर नष्ट हो रहे हैं, एक अंग यह विद्यालय भी रहा होगा.
संवेदनाएं....
अब स्कूलों को भी राजनैतिक तरिके से चलना होगा क्या? हद है ।
विद्यालय को पब्लिक स्कूल बनाने की प्रबंधन की कोशिश निश्चित तौर पर गलत कदम होगा। आखिर हमारे अपने देश में हिन्दी का महत्व नहीं होगा , तो भला और कहां होगा ?
जब भी हम किसी की नक़ल करते हैं उसी वक्त हम उन अनोखेपन को खो देते हैं जिसकी बदौलत हमारा बजूद हुआ करता है.
बहुत दुखद बात है.
par iske piche karan kya hai,un students ka soacho jo is school se padh ke baad main english sikhne ke liye struggle karte hain.
Pahle hamin Hindi ki jaroorat banani hogi tabhi hindi sikhane walon ki jaroorat hai,aaj ke paripeksh main mujhe bahut dukh hai ki industry ke aunder Hindi communication language nahin rahi
:( aur usi ka ek parinam ye hai kahin dekhte dekhte hindi itihaas ka vishay na ban jaye
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