जब वूमोज़ यानी वूमेन मोज़िल्ला के लिए प्रियंका और हेमा ने अपनी बात स्लाइडों के माध्यम से रखनी शुरू की उसी वक्त मैं वूमोज़ के लिए हिन्दी का क्या छोटा-सा शब्द बन सकता है सोच रहा था। महिला मोज़िल्ला यानी ममो या फिर मोज़िल्ला महिला यानी मोम। ममो – अच्छा नहीं लगता। मोम! थोड़ी-सी हंसी भी आ गयी थी इस संयोग पर। तबतक प्रियंका सवाल खड़े कर रही थीं कि फ़ॉस में महिलाओं की शिरकत कम क्यों हैं वह भी महज दो फीसदी? क्या इसके लिए महिलाएँ ही ज़िम्मेदार हैं या फिर पुरूषों के दिमागी आग्रह उन्हें यहाँ भी पीछे धकेल देते हैं? सवाल ज़ायज हैं और ये सवाल फ़ॉस में मौज़ूद उन पुरूष गीकों से किए गए हैं जो ओपन सोर्स को ज़म्हूरियत की पाठशाला मानते हैं। और जवाब भी उन्हीं पुरूषों को देने हैं। सवाल को धौंस के साथ पूछने के लिए हेमा और प्रियंका का शुक्रिया। निश्चित रूप से फक्त मोम की मूरतें नहीं हैं ये।
कल मोज़िल्ला के एक ज़लसे में जाना हुआ – मोज़िल्ला कार्नीवल। मैं अभी उसी ज़लसे के एक हिस्से की बात कर रहा था। मैंने भी अमन के साथ मोज़िल्ला फ़ायरफ़ॉक्स मैथिली रिलीज की पूरी कहानी – लोकेल से रिलीज बिल्ड – कही, बगज़िला के माध्यम से। फ़ायरफ़ॉक्स के रिलीज का यह तरीका नया रहा। मुझसे पहले फैज़ल ने अपनी बात रखी थी। फैज़ल ने फ़ायरफ़ॉक्स उर्दू के लिए काम कर रहीं हुदा के साथ बढ़िया काम किया है और उम्मीद है हम उर्दू फ़ायरफ़ॉक्स जल्द ही रिलीज होता देख पाएँगे। विनील से भी मिलना हुआ। सायक, सौम्या, अंकित, फैज़ल आदि के रूप में पुणे में मोज़िल्ला को अच्छे कार्यकर्ता मिले हैं और उम्मीद है हम और अच्छे कार्यक्रम इनलोगों की वजह से देख पाएँगे।
फ़ायरफ़ॉक्स के लोकलाइजेशन पर अपने प्रजेन्टेशन के बाद अमन ने विनय नेनवाणी की मदद की और उन्होंने सिंधी फ़ायरफ़ॉक्स के लिए निवेदन कर दिया है। वहीं एक मंगोलियाई उपयोक्ता भी मिला। वह परेशान था कि उसकी लिपि फ़ायरफ़ॉक्स पर सही तरीके से रेंडर नहीं होती है। उसने बताया कि लिपि ऊपर से नीचे की ओर जाती है और एक ही अक्षर के तीन-तीन रूप होते हैं जो उनकी स्थिति के अनुसार बदलते हैं यानी सबसे पहले है तो एक तरह से, बीच में है तो दूसरे तरीके से और आखिर में है तो कुछ अलग ही तरह से। वह बता रहे थे कि इंटरनेट एक्सप्लोरर इसे सपोर्ट कर रहा है जबकि फ़ायरफ़ॉक्स में यह संभव नहीं हो पा रहा है। इस समस्या को दूर किया जाना चाहिए। वह विकिपीडिया के लिए भी काम करते हैं।
कल मोज़िल्ला के एक ज़लसे में जाना हुआ – मोज़िल्ला कार्नीवल। मैं अभी उसी ज़लसे के एक हिस्से की बात कर रहा था। मैंने भी अमन के साथ मोज़िल्ला फ़ायरफ़ॉक्स मैथिली रिलीज की पूरी कहानी – लोकेल से रिलीज बिल्ड – कही, बगज़िला के माध्यम से। फ़ायरफ़ॉक्स के रिलीज का यह तरीका नया रहा। मुझसे पहले फैज़ल ने अपनी बात रखी थी। फैज़ल ने फ़ायरफ़ॉक्स उर्दू के लिए काम कर रहीं हुदा के साथ बढ़िया काम किया है और उम्मीद है हम उर्दू फ़ायरफ़ॉक्स जल्द ही रिलीज होता देख पाएँगे। विनील से भी मिलना हुआ। सायक, सौम्या, अंकित, फैज़ल आदि के रूप में पुणे में मोज़िल्ला को अच्छे कार्यकर्ता मिले हैं और उम्मीद है हम और अच्छे कार्यक्रम इनलोगों की वजह से देख पाएँगे।
फ़ायरफ़ॉक्स के लोकलाइजेशन पर अपने प्रजेन्टेशन के बाद अमन ने विनय नेनवाणी की मदद की और उन्होंने सिंधी फ़ायरफ़ॉक्स के लिए निवेदन कर दिया है। वहीं एक मंगोलियाई उपयोक्ता भी मिला। वह परेशान था कि उसकी लिपि फ़ायरफ़ॉक्स पर सही तरीके से रेंडर नहीं होती है। उसने बताया कि लिपि ऊपर से नीचे की ओर जाती है और एक ही अक्षर के तीन-तीन रूप होते हैं जो उनकी स्थिति के अनुसार बदलते हैं यानी सबसे पहले है तो एक तरह से, बीच में है तो दूसरे तरीके से और आखिर में है तो कुछ अलग ही तरह से। वह बता रहे थे कि इंटरनेट एक्सप्लोरर इसे सपोर्ट कर रहा है जबकि फ़ायरफ़ॉक्स में यह संभव नहीं हो पा रहा है। इस समस्या को दूर किया जाना चाहिए। वह विकिपीडिया के लिए भी काम करते हैं।