बिहार के जमालपुर में शकीरा का डांस होनेवाला था, और मेरे थोड़े जवान चाचा-चाची और भाइयों ने सुबह से ही तैयारी चालू कर दी थी. उत्सव का माहौल. क्या कहने! परंतु जब सही समय आया तो मैं ज्यादा देख नहीं पाया. कुछ शोर-गुल ही इतना था, और देखने वाले भी काफी हुड़दंग मचा रहे थे. फिर भी लगा कि लोग मस्त थे. गोरी चमड़ी को नजदीक से देखने का लुत्फ कुछ अलग ही दिख रहा था सबके चेहरे से. मेरा बेटा भी मेरे साथ था. शकीरा जमालपुर से ट्रेन पकड़ रही है. साली ट्रेन काफी टूटी-फूटी है. मैं काफी शर्मिंदा हो रहा हूँ कि क्या हाल कर रखा है. भारत और खासकर फिर बिहार की तो फजीहत हो गई.
लेकिन उसी बीच बीबी की प्यार भरी आवाज सुनाई दी, आज चाय आप ही बनाएँ. शकीरा और संगीता. कुछ मैच नहीं किया. मैंने कहा, "धत्त तेरे की, क्या किया आपने. अभी शकीरा की नाच देख रहा था." नींद खोलने की कोशिश करते बीवी ने कहा कि आज तो लाइफ बन गई. सोना सफल हो गया होगा. अब चाय तो बनाइए. उठा. चाय चूल्हे पर चढ़ा दिया. यह भी गजब की बात है कि आला दर्जे का भाग्यवादी होने के बावजूद मैं कार्य-कारण की बिना सोचे रह नहीं पाता. सोचने लगा कि पता नहीं क्यों शकीरा का सपना देखा. कोई दूसरा सपना देखता तो शायद दूसरे पल ही दिमाग से निकाल देता, लेकिन शकीरा को और वह भी बिहार में नाचती हुई!
सोचने लगा तो मुझे लगा कि कई कारण हो सकते हैं. इधर कुछ दिन पहले ही बिग बॉस में श्वेता तिवारी से मनोज तिवारी शकीरा के लटके-झटके के बारे में अपना जनरल नॉलेज बढ़ा रहे थे. शायद इसका असर हो. फिर ध्यान आया कि कल ही तो मोज़िल्ला मीट का एक वीडियो फेसबुक पर देखा था. श्रीलंका के दनिश्का ने लगाया था. उस वीडियो में वह कन्या भी थी जो मुझे कनाडा में उस कॉन्फरेंस में मिली थी और देश पूछने पर छूटते ही बताया था कि वह कोलंबिया की है...वही कोलंबिया जहाँ की शकीरा है. मैंने कहा भी था हाँ हाँ वही कोलंबिया न जहाँ के मार्केज़ हैं. वह बोली थी - हाँ, हाँ वो भी हैं. मुझे दुख भी हुआ था कि वह अगर मार्केज़ बताती तो और अच्छा लगता. मार्केज़ का भी तो कल या परसों ही तो इंटरव्यू पढ़ा था अपने प्रभातजी के खूबसूरत अनुवाद में. शायद यही गुत्थी हो. फिर लगा कि लगता है कि सपने में शकीरा कुछ नहीं, बस मेरी सठियाती जवानी की 'बेहूदी' ख्वाहिश हो सकती है. और कुछ नहीं. फिर याद आया कि आजकल मेरी 'टपोरी' बीवी गाना गुनगुनाते रहती है, शकीरा से भी ज्यादा तेरी हिले नथुनी...शायद कुछ इसी कारण शकीरा को हिलते देखने की इच्छा हो गई होगी.
लेकिन पता नहीं क्यों कोई कारण मुझे कनविंस नहीं कर पा रहा था. हमलोग पीते हैं लप्चू चाय. उसे बनाकर कुछ देर तक के लिए ढक दिया था पत्ती के फूलने के लिए ताकि महक बढ़िया आए. ये कारण तो मुझे ठीक लग रहे थे, सिर्फ एक कोण था जो समझ में नहीं आ रहा था कि शकीरा पुणे आ सकती थी, मुंबई आ सकती थी, वह बिहार क्यों गई...जमालपुर. एकाएक अविनाशजी की फेसबुक की टिप्पणी याद आने लगी, "बिहारवाद बबुआ धीरे-धीरे आयी... नीतीशवा से आयी, सुशीलवा से आयी... बिहारवाद बबुआ हौले-हौले आयी...". तो क्या मेरे दिमाग में भी बिहारवाद जोर मारने लगा है. कहीं मैं यहाँ पुणे में रहते इतना त्रस्त तो नहीं हो गया हूँ
कि लगा कि बिहार को एकाएक विकसित बना देने का एक ही तरीका बचा है कि शकीरा को बिहार में नचाया जाए थोड़ी ठेठ जगह पर. या फिर नीतीश बाबू के परिणाम से इतना स्तब्धकारी आह्लाद में आ गया हूँ कि लगा कि नीतीशजी ने लोकतंत्र की विजय के आनंद में चार चाँद लगाने के लिए शकीरा को बिहार में नाचने के लिए आमंत्रित किया है. वैसे इससे पहले के जो तथाकथित प्रकार के नाच थे वो "राणाजी मुझको माफ करना" टाइप के थे और उसका मजा आम लोग नहीं ले पाए थे. इस तथाकथित नाच की चर्चा आज भी गली-गली में है और लोग बेहद दुखी हो जाते हैं यह सुनाते हुए कि कैसे 'बस कुछ लोगों' ने 'एक करोड़' की उस नाच का मजा लिया था.
मेरी बीवी बोली कि थोड़ी कम ही चीनी मिलाना. आज तो शकीरा भी थोड़ी सी चाय में मिल ही गई होगी. मैं समझ गया. चाय छानने लगा. लेकिन सपने दिमाग से जा नहीं रहे थे. सपने में मैं 'अग्निलोमड़' ममता बनर्जी को गलियाँ दे रहा था कि उसने बिहार की इज्जत मिट्टी में मिला दी. जानबूझकर उसने ऐसी ट्रेन दी होगी. शकीरा को कितनी दिक्कत हो रही होगी उस ट्रेन में. किसी ने उधर से बोला था कि अब तो भागलपुर में मैकडोनाल्ड भी खुल गया है. और मेरा 'नालायक' बेटा जिद मचाने लगा कि वह मैकडोनाल्ड जाएगा. और मैं हमेशा की तरह बेटा की जिद के आगे झुक गया. और हमलोग भागलपुर की ओर चल पड़े.