मैथिली फ़्यूल में कुछ बातें काफी खास रही थी.... वहाँ उपस्थित भाषाविदों व लेखकों, जिसमें गोविंद झा, अजय कु. झा, रामानंद झा रमण, मोहन भारद्वाज और रधुवीर मोची जैसे कई जाने-माने लोग उपस्थित थे - लगभग पूरे दो दिनों तक चले कार्यक्रम में - ने फ़ॉन्ट के लिए काँटा शब्द चुना...उनका कहना था कि यह शब्द काफी आम है और हम जब कंप्यूटर के जरिए प्रिंटिंग नहीं होती थी तब जब हरेक अक्षर को खुद बारी-बारी से खाँचे में बैठाना पड़ता था तो उस अक्षर को काँटा कहा जाता था. और उस समय लोग यह बोलते थे कि फलाँ काँटा काफी बढ़िया है तो फलाँ काफी खराब.
उसी तरह उनलोगों ने कूटशब्द के लिए मैथिली में गुड़किल्ली शब्द चुना. यह गूढ़कील से बना है. उन्होंने बताया कि कुम्हार के चाक में एक ऐसी गूढ़ कील होती थी जिसकी जानकारी सिर्फ उसी को रहती थी और बिना उसके चाक चलती नहीं थी. उनका तर्क दमदार था क्योंकि कमोवेश वही स्थिति कंप्यूटर के संदर्भ में भी होती है. और उन लोगों ने माना कि ऐसे शब्दों के लिप्यंतरण व शब्दानुवाद इसलिए भारतीय संदर्भ निरर्थक हैं और उसकी जड़ें जमीन में नहीं हैं.
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